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रघुवरजसप्रकास अथ उतिम मध्यम अधिम अधमाधम च्यार प्रकार वैण सगाई उदाहरण
सोरठौ लेणा देणा लंक, भुजडंड राघव भामणै । आपायत अणसंक, सूर दता दसरथ तणा ॥ ३६
वारता पैली तुकमें उतिम ।१। दूजी तुकमें मध्यम ।२। तीजी तुकमें अध्यम ।। चौथी तुकमें अधमाधम ।४। अ च्यार वैण सगाई। तीन प्रागै कहो इण प्रकार सात वैण सगाई कही। पैला दूहामें पाद वैण सगाई कही सौ नै दूजा दूहामें उतिम वैण सगाई कही सौ एक गिणां तौ छ भेद नै जुदी दोय गिणां तौ सात भेद छै । इण प्रकार वैण सगाई समझ लीज्यौ । अथ सावरणी अखिरांरी अखरोट वैण सगाई वरणण
नीसांणी आ ई उ ए य व यता मित वरण मुणीजै । जझ ब व पफनणगघ बि बह औ मित्र अखीजै । त ट धठ द ड च छ सुकवते गत जुगम गिणीजै । अकाराद जुग जुग अखर अखरोट अखीजै । अधिक अनै सम न्यं न ऐ त्रहं भेद तवीजै ॥ ४०
उदाहरण आद अखिर सौ अंतमें खुल अधिक सखीजै । अधिक खुलै तद बे अधिक सम तिको सहीजै । ज झ ब वाद १ क्रम २ न्यं न झै अछरोट कहीजै ॥ ४१
३६. भांमण-बलैया, न्यौछावर । प्रापायत-शक्तिशाली, समर्थ । अणसंक-निर्भय, निशंक ।
दता-दातार । तणा (तनय)-पुत्र। तुक-पद्यका चरण । ४०. सावरणी-सवर्ण । अखरोट-राजस्थानी (डिंगल) साहित्य में वयण सगाईका ही एक
भेद जहाँ पर मित्र वर्णसे या जुगम (युग्म) अक्षरका युग्म अक्षरमें यथास्थान मेल हो। अखिरांरी-अक्षरोंकी। यता-इतने। मित-मित्र । वरण (वर्ण)-अक्षर । मुणीज-कहे जाते हैं। अखीज-कहे जाते हैं। जुगम (युग्म)-दो, जोड़ा। गिणीज-गिने जाते हैं।
जुग (युग)-दो। अखीज-कहे जाते हैं। अनै-और। तवीजै-कहे जाते हैं । ४१. सखी-साक्षी दी जाती है। अछरोट-अखरोट ।
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