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रघुवरजसप्रकास
[२८३ गजग्राहै जाहर ग्राहांणी, जिण वाहर कीधी जग जांणी । मह माधव केसब केसव माधव, माधव केसव पढ प्राणी ॥ लंका हण रावण जुध लीजै, दत दीन भभीखणनं दीजै। रे कौसळनंदण नंदण कौसळ, कौसळनंदण समरीजै ॥ पै रज रिखधरणी गति पाई, वळ तरणी झीवर तिरवाई। भण सीता रघुबर रघुबर सीता, सीता रघुबर भण भाई ॥२२८
अथ गीत धमाळ लछण
पूरबारध मत भाख पढ, ऊपर नव मत अक्ख । है तुकंत लघु गुरु हरख, सौ धमाळ विसक्ख ॥ २२६
प्ररथ भाख गीत सावझड़ा गीतरी तुक मात्रा चवदैरी होवै सौ भाख गीतरी तुक सवाय मात्रा नव होवै । लघु गुरु तुकंत होवै । च्यार ही मोहरा मिळ सौ धमाळ गीत कहावै।
अथ गीत धमाळ उदाहरण
गीत कवसळ सुता राजकंवार, क्रत जन काजरा ।
दरसै चखां दत खग दोय लंगर लाजरा ॥ २२८. जिण-जिस । वाहर-रक्षा | कीधी-की। माधव-विष्णु। दत-दान ! दीन-गरीब ।
भभीखण-विभीषणको। नंदण-पुत्र। समरीजै-स्मरण कीजिए। पै-चरण । रज-धूलि । रिख-ऋषि । घरणी-गृहिणी। गति-मोक्ष । वळ-फिर । तरणी
नौका। झीवर-मल्लाह । भण-कह। नोट-त्रिबंक गीतके लक्षण रघनाथरूपक में अधिक स्पष्ट हैं। यहाँ पर उसकी नकल दी
जाती है। त्रिबंक गीतमें प्रत्येक पदमें सोलह मात्राएँ होती हैं। प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ पदके तुकांत मिलाये जाते हैं। तीसरे पदमें आदिमें दो मात्राएँ मध्यमें दो चौकल और अंतमें एक षटकल रखना चाहिए। तीसरे पदमें जो चौकल आवे वह
पलट कर चौथे पदमें भी पानी चाहिए। उदाहरण देखनेसे स्पष्ट हो जायेगा। २२६. मत-मात्रा। भाख -एक गीत छंदका नाम । अक्ख-कह । विसक्ख-विशेष । २३०. क्रत-काम । चखां (चक्ष)-नेत्र, नयन । दत-दांन । खग-तलवार । लंगर-पैरोंको
बांधने का बंधन विशेष, पैरों का एक प्राभूषण ।
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