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रघुवरजसप्रकास
अथ निसांणी छंद वरणण अथ निसांणी लछण दूहौ
छै नीसांगी मांझक तुक
अरथ
निसांणी छंदरै प्रेक तुक प्रत मात्रा तेवीस प्रावै । इण लेखे तौ निसांणी मात्रा छंद छै नै क तुकरा विभाग तथा विस्रांम दोय छै । क पहलौवित्रांम तौ मात्रा तेरैं ऊपर होवै । दूजौ विस्रांम मात्रा दस पर होवै यौ लछण है । पै'ली मात्रा असम चरण छंद कह्या जठे छंद निस्रणिका कह्यौ, सोई निसांणी छंद जांणणौ । जिके च्यार प्रकाररा छं सौ फेर कहां छां ।
दूहा
रे नी सांगी छंदरा, पढ़िया तिण लछण निरतिकौ, वर
१. मुकांम - विश्राम |
छंदरै, मत तेवीस
मुकांम |
दस दस, वदै दोय विसरांम ॥ १
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दु लघु तुकंत अख, बीजी गुरु लघु अंत |
अंत तीसरी लघु गुरु, चौथी बि गुरु तुकंत ॥ ३
अरथ
निसांणी छंद एक तुक प्रत मात्रा तेवीस होवै । जिणरा च्यार प्रकार । करै तौ तुरंत दोय लघु प्रखर होवे । दूजीरे तुकंत बाद गुरु अंत लघु हो । तीजी तुकंत प्रद लघु अंत गुरु होवै । चौथीरं तुकंत दोय गुरु करणगण होवे । च्यार प्रकाररी निसांणी छै ।
अथ प्रथम लघु तुकंत गरभितनांमा निसांनी जांगड़ी उदाहरण निसांरगी गह भर राघव तारिया, दरियाव विच गेंवर । किया खाध जटायका, निज हत्थ नरेसर ||
यौ - यह । जठे - जहां पर ।
च्यार प्रकार | सुकव विचार || २
मांझ-मध्य | दस - तेरह । वदे - कहते हैं । विसरांम- विश्राम |
२. तिण- उस ।
३. ख- कह । करण-गण-दो दीर्घ मात्राका नाम ऽऽ ।
४. गह - गर्व । तारिया - उद्धार किये । दरियाव - समुद्र, सागर । विच-बीच, मध्य । गेंवर - हाथी । त्राध - श्राद्ध । जटायका- जटायुके । हत्थ - हाथ । नरेसर - नरेश्वर, राजा ।
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