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रघुवरजसप्रकास
गीत सुध सांगौर उदाहरण ( गीत जात सतसर ) गीत
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अडग तेज अरणथघ सरद ध्यान स्रुति नीम वर कार कळ जोग जप थिर प्रभा नीर पय यंद बुध नीत थट मेर रिव समंद चंद भव भ्रहम रांम ॥ भूमंडळ पाज नभ सिखर पुर उवर भव गुरत दुत गहर मुद कोप छिब गाथ | रिख रिखी रिख उदध हिम कज दासरथ नाग खग दुध हरी हर बिरंचनाथ || देव चक्र हंस दुध सिद्ध दुज जन नंद स्रग ग्रह् कभ गण विप्र अवनीस | सद्रढ तप अथग हेम सिध मेघ सत द्र हरि सिंघ निसय सिव दुहित ईस || विवुध कंज मीन तर भूप जग सेवगा भैमुद सुख अनंद वर य थ | हेम गिर भांग दुध चंद स्रब भ्रहम,
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हं निज जनां पाळगर अधिक रघुनाथ || ६१
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अथ अरथ
सुध सांणोर गीतरै श्रादरी तुक मात्रा २३ तेवीस होवे । तुक दूजी मात्रा १८ अठारै हो । तुक तीजी मात्रा २० बीस होवै । तुक चौथी मात्रा १८ अठार होवे । गीत के अंत में लघु होवै, और दूहां मात्रा पैली तुककी मात्रा २०, तुक दूजी मात्रा १८, तुक तीजी मात्रा २०, तुक चौथी मात्रा १८ ईं प्रकार होवै सौ सुध सौर गीत कहीजै । यो गीतको संचौ अब गीतकी सतसर जात छै जींसूं प्ररथ लखां छां ।
६१. सतसर - वड़ी सांरगौर, प्रहास सांरगौर आदि गीतोंकी संज्ञा विशेष । हूं-से ।
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नांम |
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