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रघुवरजसप्रकास पहली दूजी मेळ पढ, तीजी छठी मिळाप । मेळ चवथी पंचमी, जपै वडा किव जाप ॥ १२५ धुर बी चौथी पंचमी, भगण नगण यां अंत । तीजी छठी अंत तुक, जगण अहेस जपंत ॥ १२६
प्ररथ
पै'ली तुक मात्रा सोळं, तुक दूजी मात्रा चवदै, तुक तोजी मात्रा चवदै, तुक चौथी मात्रा चवदै, तुक पांचमी मात्रा चवदै, तुक छठी मात्रा चौवीस होवै। पै'ली दूजी रै पछै नगण । चौथी, पांचमी तुकरै अत भगण तथा अंत लघु होवै । तीजी छठी तुकरै अंत जगण होवै। दूजा दूहां-पैली, दूजी, चौथी, पांचमी तुका मात्रा चवदै होवै। तीजो छठी तुक मात्रा चौबीस होवै, जी गीतरौ नाम हिरणझंप कहीजै।
अथ गीत हिरणझए उदाहरण
गीत निज आठ जोग अभ्यास अहनिस , सधै सुर घर जुगम रवि सस , करै रेचक पूरक कुंभक, वहै दम सिर ठाम । असी च्यार सुधार आसण , धौत बसती नीत धारण , करौ श्रेता कठिण विधक्रम, न सम राघव नाम ।
१२५. चवथी-चतुर्थ। १२६. बी (द्वि)-दूसरी । यां-इन । अहेस (अहीश)-शेष-नाग । १२७. पाठ-जोग-प्रशंग योग । अहनिस-रात-दिन । सुर (स्वर)-नाकसे निकलने वाली
वायु । जुगम (युग्म)-दो। रवि-सूर्य । सस (शशि)-चन्द्रमा। रेचक-प्राणायामकी एक क्रिया विशेष जिससे खींचे हुए सांसको विधिपूर्वक बाहर निकाला जाता है। पूरक-प्राणायामकी प्रथम क्रिया या विधि जिसमें सांसको भीतरकी ओर बलपूर्वक खींचते हैं। कुंभक-प्राणायामकी एक विधि जिसमें सांसकी वायुको भीतर ही रोक रखते हैं । दम-सांस । धौत-शरीर-शुद्धि की योगकी एक क्रिया, धौति । बसती (वस्ति)-योगकी एक क्रिया विशेष । नीत-कपड़ेकी एक पतली धज्जीको गलेसे पेटमें डाल कर प्रांतोंको शुद्ध करनेकी हठयोगकी एक क्रिया-(सम-बराबर, समान)
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