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रघुवरजसप्रकास रात दिवस भज रांम नरेसर , पात राख नहचौ मन पूरौ । धूधारण कारण लख धूरौ , उधारणरौ किसौ, अणं रौ । के जम नाम तणौ तन सज कर , भै जमह डर डर मत भाजै । किया सुनाथ हाथ ग्रह केतां , वीठळनाथ अनाथां वाजै ॥ जम दळ वटपाड़ौ वह जासी , थासी नहीं विगाड़ी थारै । जगपत निस दिन नाम जपंतां , संता सारा काज सुधारै ॥ ८८ अथ गीत चौटियाळ लछण
दहौ सुज प्रहास सांणौर, दस मत अरध सिवाय । मेल दोय पूरब उतर, चौटियाळ गुण चाय ॥ ८६
अरथ एचाटियाळ गोत प्रहास सांणौर होवै, जीके अाधा गीतके अाधा दूहा सिवाय दस मात्राकी एक तुक पूरबारधमें सिवाय होवै । एक तुक उतरारधमें दस मात्राकी सिवाय होवै । पूरबारध पर उतरारधमें दोय मेळ तुकांत होवै । पैली तुकांतकै, अंत दो गुरु होवै । दूजा तुकांतकै अंत रगण होवै । पैली तुक मात्रा २३, तुक दूजी मात्रा १७, तुक तीजी मात्रा १०.तुक चौथी मात्रा २०, तुक पांचमी मात्रा १७, तुक छठी
८८. नरेसर-नरेश्वर । नहचौ-धैर्य । पूरी-पूर्ण, पूरा। किसौ-कौनसा । अणूंरौ-अभाव
कमी। ग्रह-पकड़ कर । केतां-कितनोंको। वीठळनाथ-स्वामी, ईश्वर । वाजै-पुकारा
जाता है। ८९. मत-मात्रा। अरध-ग्राधा। सिवाय-अतिरिक्त, विशेष । गण-गीत छन्द । चाय
चाह । जीके-जिसके।
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