________________
रघुवरजसप्रकास
[ १८५
अथ गोतांका नाम निरूपण
पढ वसंतरमणी १ प्रथम, मुण जयवंत २ मुणाळ ३ । आदगीत त्रय अक्खिया, खगपत अगै फुणाळ ॥ ४४
पुनरपि सात सांणौरका नाम कथन
___छप्प सुध १ बडौ सांणौर २ समझ दूसरौ प्रहासह ३ । वळ तीजौ वेलियौ खुड़द चौथौ सर रासह ५ ॥ सुज पंचम सं हणौ छठौ जांगड़ौ सुछज्जत ६ । सोरठियौ सातमौ ७ विहद मुखक्रत वज्जत ॥ त्रय दुहै मांझ छपय सपत आद गीत अह अखीया । अन मिळे गीत यांसुं अवस भांत नदी दध भखीया ॥ ४५
अन्य प्रकार गीत नाम कथन
दूहौ सांणौरांसं गीतके, अन छंदां होय । बेछंदां मिळ गीतके, वरणं नाम सकोय ॥ ४६
अथ पुनरपि गीत नांम कथन
छंद बेप्रख्यरी स्री गणराज सारदा सुखकर । बगसौ सुमत राम सीताबर ॥
४४. निरूपण-निर्णय, विचार । मण-कह। प्रक्खिया-कहे। खगपत-गरुड़। फुणाळ
शेषनाग। ४५. वळ-फिर । सुज-फिर । सुहणौ-सोहणी नामक गीत छंद । सुछज्जत-शोभा देता है।
प्रह-शेषनाग । अखीया-कहे । अन-अन्य। यांसू-इनसे। अवस-अवश्य। दध (उदधि)
समुद्र । भखीया-कहे। ४६. सकोय-सब। ४७ गणराज-श्री गणेश । सारदा-सरस्वती। बगसौ-प्रदान करो, दो। सुमत (सुमति)
श्रेष्ठ मति, सुबुद्धि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org