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रघुवरजसप्रकास
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तन कंद स्यांम सुभावनं, पटपीत विद्युत पावनं । 'किसनेस' पात उधारयं, धनु बांण पांणसु धारयं ॥ ७० छंद चंपकमाळा ( भ.म.स.ग )
गोह सरीखा पांमर गाऊ', ब्याध कबंधा ग्रीध बताऊ | नैट पापी गौतम नारी, ते रज पावां भेटत तारी ॥ देव सदा दीनां दुख दाघौ, रे भज प्रांणी भूपत राघौ ॥ ७१
छंद सारवती ( भ.भ.भग. )
चाप करां नूप रांम चढ़े, मांझ रजी तद भांग मढ़े । खोहण के सुरांण खपे, पंख सिवा पळ खाय त्रपे ॥ रे नित सौ जन भीड़ रहै, कंग जनां दुख देख कहै ॥ ७२
दूहौ
तगण यगण भगरणह गुरु, सुखमा छंद सुभाय ।
नगरण जगण नगराह गुरु, अम्रित गत या भाय ॥ ७३
७०. तन-शरीर । कंद - बादल । सुभावनं - सुन्दर । पटपीत - पीताम्बर । विद्युत - बिजली । पावनं - पवित्र । धनु- धनुष । पांणसु-हाथमें । धारयं धारण किए हुए । निषादराज जो श्रृंगवेरपुरका स्वामी था । सरीखा - समान, सदृश । पांमर-नीच । ब्याध ( विराध ) - एक राक्षसका नाम जिसको दण्डकारण्य में
७१. गोह (ग्रह) - प्रसिद्ध राम भक्त
इसका मुँह इसके पेट में
लक्ष्मणने मारा था। कबंधा-एक दानव जो देवीका पुत्र था, था। कहते हैं कि इन्द्रने इसको एक बार वज्र से मारा इससे शिर और पैर पेटमें घुस गये थे । इसे पूर्वजन्मका विश्वासु गंधर्व लिखा है । रामचंद्रजी से इसका दण्डकारण्य में युद्ध हुआ था । रामचंद्रजीने इसका हाथ काट कर इसको जीवित भूमिमें गाड़ दिया । ग्रोध- जटायु नापका पक्षी । नै-प्रोर । सट - मूर्ख । रज-धूलि । पावां-पैरों । भेटतस्पर्श करते ही । तारी - उद्धार कर दिया। दाघौ जलाया, जलाने वाला । भूपत ( भूपति ) - राजा राघौ - श्री रामचंद्र | ७२. चाप - धनुष । करां-हाथों । मांझ-मध्य में । रजी- धूलि । तद-तब | भांण - सूर्य ।
मढ़े - प्राच्छादित हो गया । खोहण (अक्षौहिनी ) - सेना । प्रसुरांण - श्रसुर, राक्षस ! खपेनाश हो गये। पंख - पक्षी । सिवा (शिवा) - शृगाली । पळ - श्रामिष । त्रपे संतुष्ठित हुए, अघाये । सौ-वह । भीड़-सहाय, मदद। कुंण- कौन । जनां भक्तों । देणदेने को |
७३. सुभाय - अच्छा लगे । यण- इस । भाय-प्रकार
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