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रघुवरजसप्रकास कवि छंदोभंग पंग कह तुक धुर लछण तोरमें । जात विरुध जांगड़ारौ दूही वणै लघू सांणोरमें ॥ ३६ विस्णु नाम कुळ विस्ण विस्णु सुत मित्र अपस बद । कच अहिमुख ससि लंक स्यंघ कुच कोक नाळ छिद ॥ मनख्या मत विललाय गाय प्रभुजी पख तूटल । रांमण हणियौ राम गृह खाधौ तारक खळ ।। यण भांत कहै बहरौ यळा महपतमें पय रांम रे। तुक एण अमंगळ आद अंत कवियण विध गुण नह करे॥ ३७
अथ ग्यारह दोख छप्पै प्ररथ कहियौ मैं अती सन्मुखादिक नव उक्ति कही ज्यां महली एक ही उक्तिरौ रूप निभै नहीं, उक्तिरी ठीक पड़े नहीं सौ अंध दोख । कहियौ मैं के कहूं किसू, अठै कवि वचन छै कै कोई और वचन छ, के देव नर नाग वचन छै कै मानसी विचार छ, अठै बचनरी खबर नहीं, संदेह छै, उक्तिरौ रूप रुळियौ छै । सनमुख छ के परमुख छ, के परामुख छ, के स्रीमुख छ, के गरभित छै, कै मिस्रित छै। अठै कांई निस्चय नहीं जिणसू अंध दोख छै । १
भाखा बिरुद्ध सौ छबकाळ दूखण कहावै। लिता, पान, धनंख रांम। लिता पंजाबी भाखा छै । पान ब्रज भाखा छै। राम देस भाखा। अठै तोन भाखा सांमल, जिणसं छबकाळ दोख छ। २
जातरौ पितारौ मुदौ जाहर न होवै सौ हीण दोख कहावै। अज अजेव जगईस नमौ। अठै अज सिवनै कह्यौ कै विस्ण नै, दोई अजैव दोई जगतरा ईस छ, यां दोयांईरै जात किसो नै मा बाप किसा, फेर अजन्मारै मा बापरौ लेखौ कांई ठीक नहीं, नामरी पण ठीक नहीं। जिण ताबै हीण दोख हुवौ । ३
३६. पंग-पांगळा नामक एक साहित्यिक दोषका नाम । ३७. नाळ छिद-नाळ छेद नामक साहित्यिक दोषका नाम । पख-तूटळ-वह जिसका पक्ष
खंडित हो-एक साहित्यिक दोषका नाम । खाधौ-ध्वंश किया, मारा। तारकतारकासुर नामक राक्षस । बहरौ-एक साहित्यिक दोषका नाम । ज्यां-जिन । महली-अन्दरकी। ठीक-ज्ञान, पता। कै-या, अथवा । मानसी
मनुष्य सम्बन्धी । रुळि यौ-नष्ट हया। २. दूखण-दोष। सांमल-साथ ।
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