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रघुवरजसप्रकास
___ छंद महाभुजंगप्रयात (८ य.) नमौ राम सीतावर औधनाथं समाथं महाबीर संसार सारं । अनदं अघट्ट अरोडं अगंजं अनंमं अछेहं अरेहं उदारं ॥ अनेकं असंकं अलटं अरेसं खगां पांण अाजांणबाहू खपावै । गहीरं सधीरं रघुराज बीरं गरीबं निवाज कवी क्यों न गावै ॥१७३ अथ वरण उपछंद वरणण तत्र प्राद सालूर छंद तिण लछण वरणण
दूही एक करण दुजबरसु खट, सगण अंत दरसाय । पिंगळ मत अहपत पुणे, सौ सालूर कहाय ॥१७४
__छंद सालर (ग.ग. २४ ल.स. अथवा त-+८ न+ल.ग.) पापोघ हरत अत जन चितवत । तिन हरख करत दुख हरत हरी ॥ सीतावर जसधर सुमति सदन सुभ्र ।
कळ ख सघन वन दहन करी ॥ १७३. औधनाथ-अयोध्यानाथ, श्रीरामचंद्र भगवान। समाथं-समर्थ । अनइं-अनहद ।
प्रघट्ट -अद्वितीय, अपार । अरोडं-जबरदस्त। अगंज-अजयी। अछेहं-अपार । अरेहंनिष्कलंक, पवित्र । असंक-शंका या भयरहित। अरेसं-शत्रु। पाण-प्रभाव, प्रताप ।
प्राजांणबाह-पाजानबाह । खपावै-नाश करता है। गहीर-गंभीर । सधीर-धैर्यवान। नोट-ग्रंथकर्ताने अपने ग्रंथमें माया छंद प्रकरणमें छंद, उपछंद और दण्डका भेद अति संक्षेपमें
बतलाया है। वहां पर लिखा है कि २४ मात्राका छंद, २४ से २६ मात्रा तक उपछंद और छंद और उपछंदके मेलसे दण्डक छंद बनता है। यहां पर वर्ण छंदोंमें उदाहरणमें जो उपछंद दिए हैं-वे वास्तव में दण्डक वृत्तोंके अंतर्गत ही आते हैं। दण्डकवृत्तका लक्षण यही है कि जिस वर्ण वृत्तमें प्रत्येक पदमें २६ वर्णसे अधिक वर्ण हों वह वत्त दण्डक कहा जायेगा। वे दण्डक वृत्त भी दो प्रकारके माने गये हैं-एक साधारण
दण्डक जो गरणबद्ध होते हैं, दूसरे मुक्त दण्डक जो गरगोंके बंधनसे मुक्त रहते हैं। १७४. करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । दुजबर-चार लघु मात्राका नाम । खट (षट)-छ ।
प्रहपत (अहिपति)-शेषनाग । पुणे-कहता है। १७५. पापोघ-पापोंका समूह । हरत-मिटाता है। सदन-घर। कळुख (कलुष)-पाप ।
सघन-घना।
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