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रघुवरजसप्रकास
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अथ गीतका अधिकारी कवि गीतको भाखा वरणण
अधिकारी गीतां अवस, चारण सुकवि प्रचंड । कौड़ प्रकारां गीतकी, मुरधर भाखा मंड ॥ ६
__ अथ अगण दखिर दोस हरणं
वैणसगाई वरणियां, अगण दधखर खैर । थई सगाई जेण थळ, वळे न रहियौ वैर ॥ ७ अथ गीतांकी नव उक्ति, ग्यारै जथा, ग्यारै दोस । दस वैणसगाई नाम लछण उदाहरण वरणण
उकतसु नव ग्यारह जथा, दोख अग्यारह दाख । वयणसगाई दसह विध, भांणव रूपग भाख ॥८
६. अधिकारी-योग्यता या क्षमता रखने वाला, उपयुक्त पात्र । अवस-अवश्य । प्रचंड
महान । मंड-रचना । अगण-छंद शास्त्रमें चार प्रशभ गण जिनके नाम क्रमशः जगण, तगण, रगण और सगण हैं। छंदके प्रादिमें इनका रखना अमांगलिक माना गया है। दधखिर (दग्धाक्षर)छंद-रचनामें प्रथम प्रयोग न किए जाने वाले वे अक्षर या वर्ण जिनका छंदोंमें प्रथम उपयोग अमांगलिक माना गया है। वैणसगाई-वर्ण-मैत्री। डिंगल भाषामें गीत छंदोंकी रचनाका एक नियम विशेष जिसमें जिस वर्णसे जो पद (चरण) शरू होता है वही वर्ण पदकी समाप्ति पर समाप्तिके अन्तिम चार वर्गों में कहीं न कहीं अवश्य लाया जाता है। इस प्रकारकी वर्ण-योजनासे छंद शास्त्रमें जो दग्धाक्षर व अशुभ गण माने गए हैं, अगर वे छद-रचनामें पा जाये तो वैण-सगाई होनेसे उनका दोष नहीं लगता। दधखर-दग्धाक्षर । खैर-कुशल-क्षेम । थई-हुई । सगाई-संबंध, रिश्ता । जेण-जिस । थ-स्थान । वळे-फिर। वर-शत्रता, दुश्मनी। उकत-डिंगल छंद-रचनाका एक रचना नियम विशेष । जथा-डिंगल गीतोंकी रचनाका एक नियम विशेष जिसमें कहीं तो यह अलंकारके रूप में प्रयुक्त होता है और कहीं रीतिके रूपमें। दोख (दोष)-काव्यके गुणोंमें कमी लाने वाली साहित्य संबंधी बातें। दाख-कह। भाणव-चारण कवि, कवि । रूपग-डिंगलका गीत छंद । भाख-कह ।
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