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रघुवरजसप्रकास
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दूही
दोय करण फिर रगण दौ, अंत एक गुरु आंण । सुणियौ खग कहियौ सरप, छंद सालिनी जाण ॥ ७६
छंद सालिनी ( ४ ग.र.र.ग. अथवा म.त.त.ग.ग.) गावै राघौ सौभणौ पात गाढ़ौ । आवै वाणी यू 'किसन्नेस' आदौ । ते भूला राघौ, विगतौ भवि त्यांरौ। जाणैसी पीछे वडौ भाग ज्यांरौ ॥ ८०
दूहौ दौ दुजबर अंतह सगण, मदनक छंद मुणंत । गुरु लघु क्रम ग्यारह वरण, सौ सेनका सुणंत ॥ ८१ छंद मदनक ( ८ ल.स. अथवा न.न.न.ल.ग.)
हरण कसट जन हर है। विमळ बदन रघुबर है। सरब सगुण सह सरसै। दनुज दहण भुज दरसै ॥ ८२
७६. करण-दो दीर्घ मात्राका नाम 55। प्रांण-ला कर । खग-गरुड़ । सरप-शेषनाग । ८०. राघौ-श्री रामचंद्र । सोभणौ-शोभा देने वाला। अथवा-सो = वह, भणौ = कहो। पात
(पात्र)-कवि । गाढ़ौ-दृढ, गंभीर । पाखै-कहता है। प्राढ़ौ-पढ़ा गोत्रका चारण । ते-वे। विगतौ-बरबाद हा, व्यर्थ गया। भवि (भव)-जन्म या संसार । त्यांरौउनका। जाणसी-जानेंगे। पीछे-पश्चात् । वडौ-महान । भाग-भाग्य । ज्यांरौ
जिनका। ८१. दुजबर-चार लघु मात्रा ।।।। मुणंत-कहा जाता है । सुणंत-सुना जाता है । ८२. बिमळ-पवित्र । बदन-मुख या शरीर । दनुज-राक्षस । दहण-नाश करनेको। दरस
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