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रघुवरजसप्रकास दीनांदयावंछित मौज दाता । भला गुणां जोग अहेस भ्राता ॥ ८६
रगण नगण रगणह ध्वजा, रथो द्धिता सौ होय । रगणा नगण भगणह करण, जिको स्वागता जोय ॥६०
छद रथोद्धिता (र.न.र.ल.ग) गौर स्यांम सिय रांम गाव रे, पात तं सपद ऊच पाव रे। नेक पाप हर जेण नाम रे, राज राज जगमौड़ रांम रे ।। ६१
छद स्वागता (र.न.भ.ग.ग.) रांम नाम सर पाथर तारे, आप पांण कपि सेन उतारे। जेण नाम सिव संकर जापै, मांझ कासि नर मोख समापै ॥ ६२
अथ द्वादसाखिर छंद जात जगती च्यार यगण पदप्रत्त चवां, छंद भुजंगप्रयात । लिखमीधर पदप्रत सुलछ, रगण च्यार दरसात ॥ ६३
छद भुजंगप्रियात निभौ राम जेणं तरी भ्रम्ह नारी । यं हीं ताड़का मार बांणां उधारी ॥
८६. दीनांदयावंछित-दीनों पर दया करनेकी इच्छा वाला अथवा हे दीनों, जो तुम अपने पर
दया की इच्छा करते हो। मौज-दान । दाता-देने वाला। भला-श्रेष्ठ । जोग-योग्य ।
अहेस (अहीस)-लक्ष्मण । १०. ध्वजा-एक लघ और एक दीर्घ मात्राका नाम । जिकौ-वह । ६१. रथोद्धिता-रथोद्धता नामक छंद । सिय-सीता । पात (पात्र)-कवि । नेक-थोड़ा,
किंचित । जेण-जिसका । जगमौड़-संसार-शिरोमणि । ६२. सर-सागर, समुद्र । पाथर-पत्थर। पाण-शक्ति, बल, भुजा, हाथ। सेन-सेना ।
जापै-जपते हैं। मांझ-मध्यमें । मोख-मोक्ष । समाप-देते हैं। ६३. द्वादसाखिर छंद-द्वादशाक्षरावत्ति । पदप्रत-प्रति पद या चरण । चवां-कहता हैं। ६४. भ्रम्ह-ब्राह्मण, यहां गौतम ऋषिसे अभिप्राय है जिनकी स्त्रीका नाम अहल्या था ।
यूंही-ऐसे ही।
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