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५६ ]
रघुवरजसप्रकास
जस वा जास मधि चित हुलास, अख पाप नास रघुवंस दसरथ कुमार, धनुबां
यंद |
जुध असुर जार सरणा जांनकीनाथ गिरतार सौ है समाथ भव सिंधु
धार "
सधार ।
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पाथ 9
सार । ५४
सोरठौ.
वीस मत्त विसरांम, दुवै सतर गुरु अंत दस । तीस सात मत तांम, जिण पद छंद समूलगा ।। ५५
दूहौ
आठ पंच कळ पाय यक, आख फेर गुरु अंत । नांम जेण पिंगळ निपुण, उप भूलणा अखंत ॥ ५६
छंद भूलणा
वेद चत्र भेद खट तरक नव व्याकरण वळ खट भाख जीहा वखां । भांत पौराण दस आठ पिंगळ भरथ, उगत जुगतां तरणा भेदां ॥ राग खट तीस धुनि व्यंग भूखण सुरस पात पद | जिकै बिण समझ चंडूल पंखी जिंही जे न रघुनाथचौ नांम जांणै ॥ ५७
५४. मधि - मध्य | यंद-इन्द्र । असुर राक्षस । जार-नष्ट कर। पाथ-जल । समाथ - समर्थ । भव-संसार | सिंधु- समुद्र |
५६. पाय - चरण । यक - एक । प्राख - कह । श्रखंत - कहते हैं ।
५७. वळं फिर । भाख-भाषा । जीहा-जिह्वा । पौरांण-पुराण । उगत - उक्ति । जुगतांयुक्तियों । धुनि - (सं०ध्वनि) वह निबंध या काव्य जिसमें शब्द और उसके साक्षात् अर्थसे व्यंग में विशेषता या चमत्कार हो । ब्यंग - (सं०व्यंग्य) व्यंजना वृत्तिसे प्रकट शब्दका गूढ़ार्थ । भूखण- अलंकार । विण-समझ-मूर्ख, प्रज्ञानी । चंडूळ - एक प्रकारको खाकी रंगकी छोटी चिड़िया जो वृक्षों पर बहुत सुंदर घोंसला बनाती है और बहुत ही मधुर बोलती है। पंखी-पक्षी । जिही- जैसे । जे जो ।
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