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'किसन'
रखण
रघुवरजसप्रकास
सुकव सिर धर
चरण सरण
दूहौ
विध यण गाथा वरणिया, सुजस रांम कथ सार | विध कोई चूकौ वरतां, सत किव पढ़ौ सुधार ॥ १७५
अथ गाहा १ गाहू २ विगाहा ३ उगाहा ४ गाहेणी ५ सीहणो ६ खंधांणा ७ । विचार लछण वरणण ।
गाहा विगाहा लछण
कर "
रघुनायक ॥। १७४
छंद बेयरी
गाहा ? मात्र सतावन गावै, गाहौर उलट विगाह गणा I चौपन मत गाहू३ उचरीजै, उगाहौ४ मत्त साठ अखीजै ॥ १७६ गाणी ५ बासठ मत गावत, कियां उलट सीहणी६ कहावत । चौसठ मत खंधारण ७ चवीजै, कळ विभाग यांपद-प्रत कीजै ॥ १७७
गाथारै पद-प्रत मात्रा वरणण
याद बार मत दुवै अठारह बार त्रतीय चव पनर विचारह | विगाह पद-प्रत मात्रा
पद धुर बार दुवै पनरह पुण, तीयै बार अठार चवथ ति ॥ १७८
गाहू पद-प्रत मात्रा
प्रथम बार मत्त पनर दुवै पद, वळ तिय बार पनर चौथै वद ।
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उगाहा पद-प्रत मात्रा प्रमाण
पहला बार अठार दुवै पढ़, तीजै बार अट्ठार चवथ द्रढ़ || १७६
चवथ-चतुर्थ |
१७६. वळ - फिर । तिय-तृतीय ।
१७५. विध-विधि । यण- इस । किव - कवि ।
१७६ मात्र मात्रा | उचरीजै - कहिए। श्रखोज - कहिए ।
१७७. मत मात्रा । कहावत - कहा जाता है । चवीज कहिए । पदप्रत- प्रति पद, प्रति चरण । १७८. पद-चरण । धुर - प्रथम | बार- बारह । दुवै - दूसरे ।
पुण- कह । तीयं - तृतीय |
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