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सरब कवितौ
रथ सौ, अंत चरण आभास ।
द अखर तुक नीसरै, जपै छत्रबंध जास ॥ २२८
छत्रबंध उदाहरण
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कह सेवा की कहै १ ९, नांम परजंक कवरण भरण २ ? | अख के मासां यन ३ १, नांम की सिंभ जयौ जिण ४ ? || कहजै देवां सिं ५१, महत आदरैन ६ ? । दूध संघ कुरण दूध ७ ?, मित्र दाखत कीजै रिप पंड कवरण कह नांम जिण 2 ? संतां तार किव 'किसन' छत्रबंधह कवित, ओप छत्र
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२२६. परजंक- पर्यंक, पलंग । कवण - क्या । भण- क है । श्रख - कहै । के कितने । प्रयनसूर्य अथवा चंदकी उत्तर दक्षिणकी ओर गति या प्रवृत्ति जिसको उत्तरायण और दक्षिणायन भी कहते हैं । जयौ जीता ! रिप शत्र | पंड पंडव । कवण - कौन ! सुरेस - इंद्र |
नोट- १ ओयण (चरण) । २ पलंग । ३ छ मासां । ४ त्रपुर । ५ अमर । ६ वडाई | ७ घेनकौ । ८ सजण । कैरव। इन शब्दों आदि प्रक्षरके पढ़नेसे अवधेसकै' इस तुकका छनबंध बनता है।
'ओप छत्र
सुरेस के | अवधेस ॥२२६
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