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रघुवरजसप्रकास
[ ६६ अथ चरणा दूहा विचार पहल तृतीय पद सोळ मत, दुव चव ग्यारह दाख । चरणा दूहा चुरस कर, भल किव तिणनूं भाख ॥ १०८
उदाहरण
चरणा दूहौ दट अणघट अध विकट दळांरौ, राजा सांचौ राम । बळ सौ है दिन जन निबळांरी, नित जापौ तै नाम ॥१०६
पंचा दूहौ लछरण पहले तीजै बार पढ़, उभये वेद इग्यार । पंचा दूहा सौ पुणे, सुकव जिके मतसार ॥ ११०
उदाहरण रांम भजनसं राता, महत भाग जे मांन । ज्यां सारीखौ जगमें, उत्तम न जाणै आंन ॥ १११
अथ नंदा दूहा तथा बरवै छंद ___ मोहणी लछण
दूहौ धुर तीजै मत बार धर, सुज बे चौथे सात । नंदा दोहा मोहणी, बरवै छंद कहात ॥ ११२
१०८. सोळ-सोलह । मत-मात्रा। दुव-दूसरा । चव-चतुर्थ । दाख-कह । चुरस-रीति,
अनुसार, नियमानुसार । भल-श्रेष्ठ । किव-कवि । तिण-उस । भाख-कह । १०६. दट-दुष्ट। अणघट-अपार। अघ-पाप। सांचौ-सच्चा । सौ-वह। जापौ-जपो।
तै-उसका। ११०. पहलै-प्रथम । बार-बारह । ईग्यार-ग्यारह । पुणे-कहते हैं। मत-बुद्धि, मति । १११. राता-अनुरक्त, लीन । महत-महान । भाग-भाग्य । सारीखौ-सदृश, समान ।
प्रान-अन्य। ११२. धुर-प्रथम । मत-मात्रा । बार-बारह । बे-दूसरा । नोट- ग्रंथकर्ताने नन्दा मोहणी और बरवैको एक-दूसरेके पर्याय मान कर रचना नियमके
एक ही लक्षण प्रथम तथा तृतीय चरणमें बारह मात्रा और द्वितीय और चतुर्थ चरणमें सात-सात मात्रा मानी हैं पर नंदा मोहणी और बरवैमें पूर्वाचार्योंके मतसे कुछ-कुछ भिन्न लक्षण होते हैं। बरवैमें प्रथम तृतीय चरणमें बारह-बारह मात्रा तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणमें सात-सात मात्रा सहित अंतमें जगण होना आवश्यक माना गया है। इसी प्रकार मोहणी छंदके अन्तमें सगरण होना आवश्यक होता है।
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