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रघुवरजसप्रकास
छंद उप भूलरणा
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सीस दीधौ जिको नांम रघूनाथसं नैा दीघा जिकt निरख माधव नरा | जीभ दीधी जिकै क्रीत स्त्रीवर जप होठ मुसुकाय रिझवाय पातक हरा । हाथ दीघा जिकौ जोड़ आगळ हरी
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उदर परसाद चरणा- अम्रत आचरा । पाय दीधा जिकै 'किसन' पर - दछ फिर नाच राघव
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गै सफळ कर तन नरा ॥ ५८
[ ५७
छंद मदन हरा लछण
दूह
अठ दुजबर खटकळ सुयक, एक हार गण अंत । मदन हरा सौ छंद मुणि, राघव सुजस रटंत ॥ ५६
छंद मदन हरा
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रज पाय परस जिरा नार रिखी तज देह सिला छिन मांह तरी, रट सौ हरी । दिन मांन कदन नूप जनक सदन धनुभंजी जग सीय बरी, क्रत उद्धरी ।
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वदै ५८. दीधौ - दिया । दीधा - दिये । नरा-नर, मनुष्य । दीधी-दी । स्त्रीवर - ( श्रीवर) विष्णु । पातक- पाप । हरा- मिटाने वाला । श्रागळ-प्रगाड़ी । पर-दछ - प्रदक्षिणा । श्रागं - अगाड़ी । नोट-छंद - शास्त्र के अनुसार भूलरगा (ना) छंदके लक्षण में १०, १०, १० और ७ पर विश्रामसे
कुल ३७ मात्राएं प्रत्येक चरण के अंत में यगरण सहित होती हैं। यहां पर ग्रंथकर्ता के दिए झूलरणा छंदके लक्षण स्पष्ट नहीं होते हैं । इसी प्रकार उपभूलगाके भी लक्षण स्पष्ट नहीं हैं ।
मतांतरसे आदि गुरुकी चार मात्राका
५६. प्रठ-प्राठ । दुजबर-चार मात्राका नाम । नाम ( 511 ) । हार - एक दीर्घका नाम ( 5 ) |
६०. रज - धूलि । पाय - चरण । कदन - नाश। सदन - भवन । ऋत - ( क्रतु) यज्ञ । उद्धकरीउद्धार किया ।
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