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रघुवर जसप्रकास
छंद कंता सात मात्रा
कळ सत 'कंत', जिण जगणंत । रट रघुराय, थिर सुख थाय ॥ ६
हौ
सात मत्तपद प्रत पड़े,
सुगति छंद सौ था ।
आठ मत्त अंतह तगण, पगण छंद कहवाय ॥ ७ छंद सुगति
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भूप रघुबर, सझत धनु सर ।
जूझ
मंडे,
दैत
दंडे ॥ ८
छंद पगरण प्रस्ट मात्रा
राम महराज, करण जन काज । कोट रिव क्रत, देह दुतिवंत ॥ ६
छंद मधु-भार
चव कळ जगांण, मधु भार जांण । भधि भूप, रवि कोट रूप || श्रीरामचंद्र, बिबुधेस बंद | तन दीघ तास, जपि क्रीत जास ॥ १०
६. कळ - मात्रा, संसार । सत-सात सत्य । जिण जगणंत - जिसके अन्त में जगण होता हो ।
जिसमें सारा जग विलीन होता हो । थिर - स्थिर । थाय - होता है ।
संसार में सत्य केवल ईश्वर है जिसमें ही जगत रामचन्द्रजीको रट जिससे तेरे सब सुख स्थिर हो जायें
।
७. पद प्रत पड़े- प्रत्येक चरण में 1
विलीन होता | अतः हे मन ! तू
८. जूझ - युद्ध । मंडे - रचा। दैत- दैत्य | दंडे - दण्ड दिया ।
६. अंत-क्रांति । दुतिवंत - दीप्तिमान् ।
१०.
चव - चार, कह । कळ - मात्रा, दुःख । जगांण- जिसके अंत में जगरण हो, संसार । मधुभार - एक छंद का नाम ( मधु - नशा । भार - बोझ ) ।
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