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रघुवरजसप्रकास विधयण नस्ट संख्य विपरीत, बुध बळ समझौ सुकवि बिनीत ॥ ८३ अथ वरण संख्या स्थान विपरीतकौ हर ईंका प्रकारांतरकौ उदिस्ट कहां छां।
चौपई रूप सीस दखिण ब्रत अंक, दै उलटै क्रमसू कवि निसंक। गुरु सिर अंकां एक मिळाय, भेद कहौ कवि 'किसन' सुभाय ॥ ८४ अथ वरण संख्या स्थान विपरीतकौ हर ईंका प्रकारांतरको दोन्यांकौ नस्ट कहां छां ।
चौपई भाग कळप दखिण कर ओर, विखम भाग लघु करौ सतौर । एक भेळ वांटा कर दोय, समथळ गुरू विखम लघु होय ॥ ८५ नस्ट उदिस्ट आठ परकार, निज कहि 'किसन' वरण निरधार । तू अन आळ जंजाळ तियाग, रघुबर सुजस सार चित राग ॥ ८६
अथ सोड्स प्रस्तार मात्रा वरणका सुगम लिखण विध ।
दहा
सुध सुध विपरीत थळ, संख्या उलट प्रकार । संख्या उलट प्रकार थळ, गुरु लघु पच्छु विचार ॥ ८७ सुध सुध विपरीत थळ, प्रकारांत बिहु जांण । संख्य विपरजय संख्यथळ, उलट पच्छ लघु आंण ॥ ८८
वारता सुधकै १ । सुध स्थांन विपरीतकै २ । संख्या विपरीतका प्रकारांतरकै ३ ।
५४. सीस-ऊपर। ब्रत-वृत्त । हर ई-प्रत्येक । दोन्यांको-दोनोंहीका। ८५. सतौर-ठीक । वांटा-विभाजन । थळ-स्थान । ८६. परकार-प्रकार । अन-अन्य । प्राळ जंजाळ-झूठा मायामोह। तियाग-त्याग ।
सार-तत्व । राग-अनुराग । ८७. पच्छु-पीछे। ८८. बिहुं-दोनों। विपरजय-विपर्यय । वारता-गद्य ।
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