Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यद्यपि इतिहास लेखकोंके लिये ऐसी भूल करना बड़े खेद व आश्चर्य की बात है किन्तु टारसाहब तथा उनके अंग्रेज़ अनुयायी लोगोंके विदेशी व अन्य धर्मावलम्बी होने और हमारे धर्मशास्त्रों तथा प्राचीन इतिहासों से अनभिज्ञ रहने आदि कारणों से-एक ही क्या ऐसी कई भूलें कर लेने परभी-हमें उनकी तो भूलोपर नतो कुछ उतना आश्चर्यही आता है ओरन उनपर कुछ अधिक विचार ही करने की आवश्यकता दीखती है । क्यों कि उपरोक्त शास्त्र प्रमाणों तथा प्राचीन ऐतिहासिक प्रमाणों से टाड साहबकी भूलतो स्वयं ही सिद्ध है अतः इस पुस्तकके बनाने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं थी। परन्तु आजकल के कोई२ अविचारवान् एतद्देशीय लोग भी प्राचीन इतिहासों से अनभिज्ञ रहने आदिके कारण वही टाड-राजस्थानवाली ऊटपटांग वात कह बैठते हैं। उनकी ऐसी बेढंगी वात सुनकर इतर लोग भ्रममें न पड़ जावें इसी लिये मैंने यह 'टाड भूदलर्शक' पुस्तक प्रकाशित किई है। इसमें तवारीख़ जैसलमेर, रिपोर्ट मर्दुमशुमारी राज्य मारवाड़ आदि के उपरान्त अन्यान्य अनेक प्राचीन इतिहासोंके कई पुष्ट प्रमाण लिखने के अतिरिक्त उसी टाड-राजस्थानही के ऐसे प्रमाण लिखे हैं कि जिनके देख लेने मात्रही से 'टाडसाहब की तो भूल' 'उनके मतानुयायियों की अन्ध परम्परा' एवं 'पुकरणे ब्राह्मणोंकी माचीनता' अनायासही स्पष्टविदित होजावेगी। ___ अतः जो लोग टाड-राजस्थानहीको 'बाबा वाक्यं प्रमाणम' मानते हों उन्हें भी इस पुस्तक को देखकर निश्चय कर लेना चाहिये कि टाड-राजस्थान में ऐसी २ और भी कई भुलें हुई होंगी। परन्तु साथ ही यहभी समझ लेना चाहिये कि वे भूलें, किसी द्वेष भावसे नहीं, किन्तु टाड साहबकी अनभिज्ञता आदि ही कारणों से हुई हैं। और यदि उन्हें ही कोई विदित कर देता तो वे उसका धन्यवाद मानकर उन भूलोंको स्वयं तत्काल निकाल देते। पर अब स्वयं ग्रंथ कर्चाके विद्यमान न रहने से उस पुस्तकों का लेख न्यूनाधिक करनेका तो अधिकार अब किसी को भी नहीं है, For Private And Personal Use Only

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