Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 23
________________ - -(.२९ ) न्द्रसेन जी जैन वैद्यका कुरीति निवारण और स्त्री शिक्षापर वीच बीच में भजनोंके साथ बड़ा सुन्दर व्याख्यान हुआ। इस के पश्चाद सर्व लोगोंके अनुरोधसे कुंवर दिग्विजय सिंह जी खड़े हुए और भापने जैन धर्मको सच्ची प्रभावना और उसकी भाबश्यकतापर वाड़ी.गम्भीरता और मार्मिकतासे प्र भावशाली विबेचन किया। भजन होने के पश्चाद् सभा सानन्द समाप्त हुई। आज रात्रिको श्रीमान् स्याद्वाद् वारिधि बादि गजकेसरी. पंडित गोपाल दास जी वरैय्याका व्याख्यान होना निश्चित हुआ था तदनुसार निन्त्र विज्ञापन प्रकाशित किया गया। ॥ वन्दे जिनवरम् ॥ आइये ! .. पधारिये ! लाभ उठाइये !!! एक अपूर्व व्याख्यान । आज ता० १ जौलाई सन् १९१२ ई० को स्थान गोदोंकी नसियां में श्री मान् स्याद्वाद वारिधि वादिगज केसरी पं० . गोपाल दासजी. वरैय्याका जैन सिद्धान्त (Jain Philosophy) पर सायङ्कालके ८ बजेसे एक अद्वितीय मुललित व्याख्यान होगा। अतःसर्व सज्जन महोदयगण अवश्यमेव पधारकर और व्याख्यान अत्रण कर धर्म लाभ उठावें। - प्रार्थी-घीसूलाल अजमेरा मंत्री श्री जैन कुमार सभा मजमेर ता०.१ जुलाई १९१२ कज्ञ तारीख ३० जनके मध्यान्हको ईश्वरके सूष्टि कर्तृत्वके विषय में, जो मौखिक शास्त्रार्थ वादिगज केसरी द्वारा श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी सभा और स्वामी दर्शनानन्द जीसे जैन धर्मको बड़ी सफलता और बड़ी संभावनासे हुश्रा था और उसका जो उत्तम प्रभाव सर्व साधारमा पर पड़ा था वह खा. मीजी और प्रार्यसमाजियोंको असह्य हुआ। उन्होंने उस प्रभावको नष्ट करने और अपने खोये हुये मानको पुनः प्राप्त करने के अर्थ एक प्रपंच ( सर्व सधारण के आंखों में धल डालनेको) रचा। स्वामीजीने पंडित दुर्गादत्तजी को एक मनुष्य द्वारा राय बहादुर सेठ नेमिचन्द . जी सोनीके रङ्ग महलसे अपने मिलने के अर्थ आर्यसमाज भवन में बुलबा भेजा और वहांपर उनको

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