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( १९९) की एक शक्ति है वह एक अवस्थाको छोड़कर दूसरी अवस्थाको प्राप्त करती रहती है और भी अनेक निमित्त हैं जैसे कि मुगदरसे घटको तोड़ डाला तो घटका नाश और कपालके उत्पाद में मुगदर निमित्त कारस पड़ा यदि ईश्वर कार्य मात्र में निमित्त कारखा माना जाय तो जितने संपारमें बुरे काम होते हैं सब ईश्वरकी तरफसे समझे जायंगे। यदि बुरे भले कार्य करना या पर्वत समु. द्रादि बनाना उसका नैमित्तिक कर्म है तो बो निमित्त क्या है गंगा नदी हिमालय पर्वत नब बनाया था उसके पहले क्या वो निमित्त नहीं था। यदि कार्य कर्तव्यता विधि उसकी स्वाभाविक मानी जाय तो एक पदार्थ में दो स्वाभाविक विरुद्ध धर्म रह नहीं सकते अतः ईश्वर में सृष्टि रचना प्रलय विधान ये दो स्वाभाविक धर्म असम्म ।
शास्त्री जी-यत्प्रतिपादितं तत्सम्यक् । किन्तु जीवाः कर्मकरणे स्वतः न्त्रा इति प्रतिपादितं ईश्वरः दयालः सन् फलं ददाति यथा मजिष्टमन्तरेण न चौरः कारावासं गन्तुमिच्छति सईश्वरः दयालुः सर्वशक्तिमान् व्यापकः सर्वेषांगुरुः सर्वशः। .
(भावार्थ) जो आपने कहा सो ठीक है। जीव ही कर्म कुकर्म करते हैं ईश्वर तो फल भुगतवाता है जैसे चोर चोरी तो स्वतन्त्र करता है जेल खाने में परतन्त्र होकर जाता है वह ईश्वर दयालु है फल देता है सर्व शक्तिमान है सबका गुरु है सर्वत है।
न्यायाचार्य जी-पुनरपि दोषान् निगलन्ति भवन्तो यद्येवं प्रणालिवं रीवर्तते तदाऽपि ईश्वरेणापराद्धं यञ्जनान् कुकर्मभ्यो न निषेधयति नच कश्चित्पिता जन्मान्धं स्वपुत्रं कूपोन्मुखं विलोक्य तत्राभिपातं स्वपुत्रस्येच्छति पश्वाहस्खदाने समुत्युको भवेत् किन्तु पूर्वत एव निषेधेन पितृल धर्म परिपा. लनास्यादेवमेव यः कश्चिञ्जनः कुकर्म कर्तुमुत्सहेत तदैवेश्वरस्य निषेधेन भा. व्यं यथा राजकीय कोटपालादयः चौर्यकर्म कर्तुमुत्सुकान् चौरान प्रथमत एवं प्रवन्धयन्ति यदि ते जानीयुश्चेत् । भवदभिमतश्च ईश्वरः सर्वज्ञो व्यापकश्च । किंध कुम निवारणे तस्य शक्तिरपि विद्यते सर्वशक्तिमत्त्वात् निवारणमपि सम्यक कर्तव्यं तस्यदयालुत्वात् ।
(भावार्थ) यदि आप यही कहते हैं कि जीव ही कर्म कुकर्मों का कर्ता है और ईश्वर दयालु है अतः फल देता है इस नियम के अनुसार भी संसार में कोई कुकर्म नहीं होना चाहिये । दयालु पिताका यह कर्तव्य नहीं है कि अपने अन्धे लड़के को पहले तो कूएमें गिर जाने दे पुनः उसको निकाल कर