Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 119
________________ ( ११७ ) व्यतिरेक नहीं बनता क्योंकि ईश्वर व्यापक है उसका प्रभाव कहीं भी नहीं पाया जाता । और जब जब ईश्वर नहीं तब तब क्षित्यादि नहीं ऐमा कालव्यतिरेक भी नहीं वन सक्ता क्योंकि ईश्वर नित्य है उसका कभी किसी ( काल में भी ) प्रभाव नहीं मिलता अन्त्रयव्यतिरेक भावसे कार्य कारण भाव व्याप्त है अर्थात् अन्वयव्यतिरेकभाव व्यापक है और कार्यकारणभाव व्याय है तब व्यापक अन्वयव्यतिरेकभाव ही नहीं है तो कार्यकारणभाव जो कि व्याप्त है कैसे वन सकेगा ? | शास्त्री जी — दद्भवद्भिः प्रतिपादितं तत्सम्यक् । कर्म तु क्षात्रवृत्ति किन्तु संस्कारवशाञ्जीवः फलं प्राप्नोति कर्म तु जड़पदार्थः कथं चेतने फलं भोःजयेत् । ईश्वरसे- दयालुः सचौरस्य कारागृहे प्रेषणमेव कार्यं करोति यथा दयालुन्ययकारः तत्फलं भोजयति इन्द्रियार्थसन्निकर्षोपचं शरीरमुत्रा ( भावार्थ ) आपने कर्मको कारण बताया कर्म तो तीनक्षण रहकर पुनः नष्ट होजाता है बाद में संस्कार के द्वारा स्वर्ग नर्क में जीव जाता है कर्म जब जड़ पदार्थ है तो चेतन को फल कैसे देखता है । ईश्वर दयालु है वह फल दिया करता है जैसे कि मजिष्ट्रेट की यही दयालुता है कि चोर को सजाका हुक्म देवे ! न्यायाचार्य जी -कर्मजडपदार्थः कथं चेतने फलमुपभोजयेदिति तु विषयान्तरं वृथैव इतस्ततः कालो नीयते जडवस्तु मदिरादिनाऽपि प्रात्मनि वि कारोत्पत्तिः प्रत्यक्षैव । ईश्वरसाधने प्रयुक्तो हेतुः कार्यत्वं संदिग्धव्यभिचारी स श्यामो मित्रातनयस्त्रादितर मित्रातनयवदित्यादिवत् न च दयालो रित्येवं कर्मयत्तद्योग्यं फलं दद्यात् किमेवं कर्त्तव्यता दयालुजनस्य । यत्कृतं कृत्वा तदपराधान् क्षाम्यति किं च दृष्टान्तमर्यादा स शरीरा सर्वज्ञस्यैवेश्वरस्य सिद्धिः स्यात् नहि सर्वज्ञाशरीरस्य तथा च भिद्वान्तव्याघातः किं च संस्कार द्वाराऽपि कर्मणः स्वर्गनस्कादिफ़ज़दातृत्वे किमन्तर्ग हुनेश्वरेण ॥ ( भावार्थ ) कर्म जड़ पदार्थ हो कर भी चेतन को विकृत कर सकता है । इसमें मदिरा सेवन से खात्मा में मदोन्मत्तता हो जाना ही प्रमाण है । आप इस तरह विषयान्तर जाते हुए समययापन करते हैं । आपने जो ईश्वरसाधन में कार्य हेतु जो दिया सो सन्दिग्ध व्यभिचारी है जैसे कि मित्रा नामेकी स्त्री के पुत्र काले थे उन्होंको देखकर मित्राके गर्भके लड़के को भो कालेवर्णका होना अनुमान द्वारा सिद्ध किया लेकिन इसमें सन्देह है क्योंकि ये नियम नहीं हैं जिसके ४ लड़के काले हैं उसके पांचवां लड़का भी काला ही इसलिये विप से उपावृत्ति इस हेतुको संदिग्ध है अतः संदिग्ध व्यभिचारी

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