Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 120
________________ ( ११८ ) हेतु है । ईश्वरकी दयालुता यही है कि उनको फल देना जैसे कि मजिस्ट्रेटकी दयालुता यही है कि चोरको जेलखाने भेजे यह आपने कहा सो सर्वंश वाधित है यों तो सभी दयालु हो सकते हैं एकने गाली दोनी दूसरेने गाली देने वाले को ५ जुते लगा दीने ये भी दयालु हो जायगा । महाशय की ऐसी दयालुता को कोई पानर लड़का भी दया नहीं कह सकता दया वही है कि उसके अपराधों को क्षमा करदें । मापके दिये दृष्टान्त (कुलाल ) से ईश्वर शरीर सहित तथा असर्वज्ञ ही सिद्ध होगा क्योंकि नदी पर्वतादिन कार्य भी विना शरीर के वन नहीं सकते और जो जन होता है वही अपनी इच्छा पूर्तिके लिये घट पटादि बनाया करता है तथा गर्मी और सर्दी के चारचार महीने तो ठीक निकलते हैं। लेकिन चतुर्मास में अक्सर परमेश्वर गलती कर देता है कभी दो दो महीने बिना वर्षाके निकल जाते हैं तोपि श्ररूपज्ञता आई ऐसा मानोंगे तो स्वसिद्धान से विरोध पड़ेगा । यदि दुर्भिक्ष स्वर्ग नर्क आदि, जीवोंके धर्म अधर्मसे होते हैं ऐसा कहोगे तो वीचमें ईश्वरको मानने की क्या आवश्यकता है। शास्त्री जी - यद्भवद्भिः प्रतिपादितं तत्सम्यक् । जगत् उत्पद्यते विनश्यति सनैमित्तिभः निमित्तमन्तरा नोत्पद्यते विनश्यति सनिमित्त ईश्वरः जीवकर्मकरो स्वतन्त्रः फलभोगे च परतन्त्रः । ( भावार्थ ) -- जगत् वरावर उत्पन्न होता है नष्ट होता है यह उत्पाद विनाश विना किसी निमित्त के हो नहीं सकता वो निमित्त कौन है ? ईश्वर । जीव कर्म करने में स्वतन्त्र है और फल भोगने में परतन्त्र है ॥ न्यायाचार्य जी — अस्मत्प्रदत्त दोषपरिहारश्च न विधीयते । उत्पादविमाशौ च यद्यपि नैमित्तिको परं न स निमित्त ईश्वरः किन्तु अनन्तगुण समुदायात्मके द्रव्ये एको द्रव्यत्व नामको गुणो वर्त्तते तद्द्वारा एकामवस्थां त्य क्या अवस्थान्तरं प्राप्नोति नित्यशस्तत्र च बहूनि अनिर्धारितानि निमितानि यथा मुद्गरादिना घटस्याभिघाते घटो विनश्यति कपाल मुत्पद्यते । किन संसारे यानि कुत्सितकार्याणि तेषां सर्वेषां विधाता ईश्वरः स्यात् तस्य सर्वत्र निमित्तकारणत्वात् यदि कार्यमात्रव्यापारे तस्य नैमित्तिको यत्रः । तदा क्षित्यादि कार्यकर्त्तव्यतायां तस्य निमित्तं वाच्यं यदि स्वाभाविकस्तदा सृष्टिप्रलयादि विरुद्धकार्योत्पत्तिरेकेन स्वभावेन कथं घटेत ॥ ( भावार्थ ) महाप्राज्ञ जी महाराज हम दोष देते हैं उनको आप वि. लकुल ही उड़ा देते हैं अस्तु तुष्यन्तु न्यायेन हम श्रापका प्रत्युतर अवश्य ही देंगे । उत्पाद विनाश ईश्वरकृत हैं यह हो नहीं सकता दो विरुद्ध धर्म निरपेक्ष एक वस्तुमें रह नहीं सकते अनन्त गुणके समुदाय रूप द्रव्य में द्रव्यत्व नाम

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