Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 122
________________ ( १२० ) उस गलतीका फल दे। ये संमारो जीव जब कुकर्ममें लगे हैं तो अन्धे ही हैं अतः कुकर्म करने के पहले ही रोक देना चाहिये किसी जीवको कुकर्म करने की इच्छा हो रही है उसको ईश्वर जानता भी है क्योंकि सर्वज्ञ है जहां कुर्म कर रहा है वहां भी है क्योंकि वो सर्व व्यापक है । कहीं १० भादमी चोरी करनेका विचार करते हों तो कोतवाल आदि यदि जान जाय तो पहले से ही रोक देते हैं प्रशक्ति हो या नहीं मालूम हो यह दूमरी वात है लेकिन प्रशक्ति और अज्ञान ईश्वर में हो ही नहीं सकते क्योंकि वो आपने सर्वज्ञ सर्व शक्तिमान् माना है अतः घो रोक सकता है और रोकना उसको वाजिव |. भी है क्योंकि वो दयाल है। अतः ईश्वर को उक्त विशेषणोंसे विशिष्ट मानोगे तो संसार में कोई कुकर्म नहीं होना चाहिये। ......... शास्त्री जी-यत्प्रतिपादितंततमम्यक् । परन्तु असत्कर्माणि ईश्वरेण कृतानि इति न । जीवः स्वकर्म प्रेरितः करोति ईश्वरः कर्ता स्वतन्त्रत्वात् विश्वस्थकर्ता भवनस्यगोप्ता इति अतेश्च अतः कर्तृत्वमीश्वरेऽनुमीयते । (भाशर्थ ) जो कह रहे हो ठीक है। ईश्वर प्रसत्कर्मों को नहीं करता। यह जीव कर्म की प्रेरणाासे करता है। लेकिन ईश्वर में स्वतन्त्रता है इस लिये स्वतन्त्रः कर्ता इस नियम के अनुपार ईश्वर ही कर्ता है भागम ( वेद ) में भी कर्ता लिखा है अब आप क्या कहते हैं। __न्यायाच र्यजी-यदि कर्मप्रेरितो जीवः कुमार्य करोति पुनः स्वतन्त्रतया ईश्वरः कर्ता इति वदतोव्याघातः । श्रागमस्य अन्योन्याश्रयदोषदुष्टत्वाद प्रामाण्यं । ईश्वरस्वरूपज्ञानं प्रागमप्रमाणाधीनं । आगमप्रामाण्यं चेश्वराधी नमिति किन अस्मत्प्रदत्तदोषाणां चानिवारणा भवतां निग्रहस्थानाय किञ्च हेतोः सत्प्रतिपक्षत्वं व्याप्तिज्ञानस्यानुमिति करणस्प मबदभिमत मिथ्याज्ञानस्य कथं सदनुमितिकरणं पितरमन्तरेण न पुत्रोत्पतिरिति दृष्टान्तस्य सृष्टयादौ स. मुत्पन्न युवपुरुषैदृष्टन्ताभासत्वं वन्य वनस्पतिप्रभृतिभिर्व्यभिचारः कर्मकर्तव्यतायां स्वतंत्रतायां फलभक्तौ परतन्त्रतायां प्रतिपाद्यमानायां श्रेष्टि चौरदृष्टान्तेन नियमभङ्गश्चेति पञ्चदोषनिवारणी या अन्यथा प्रमाणात दाभासी दुष्टतपोद्भावितौ परिहृता परिहृतदोषी वादिनः साधनतदाभासौ प्रतिवादिनो दूषणभूषणे चेति । नियमान मारेगा भवतां पराजयप्राप्तिः स्यात् । (भावार्थ ) कर्म की प्रेरणासे ही यदि जीव कुकमाँ को करता है ऐसा प्राप फरमाते हैं और ईश्वर स्वतन्त्रतया कर्ता है यह तो वदती व्याघात दोष है अथवा मातामें बन्ध्याकी ताह वाक्य है। वेदसे जो आप ईश्वर कर्तृत्व सिद्ध करना चाहते हैं इसमें अन्ययोन्याश्रय दोष है ईश्वर कर्तृत्व में प्रमा

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