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(४३) . यदि किसी ऐसे प्रतिष्ठित योग्य पुरुषको जिम्मेवरीका प्रबन्ध श्राप नहीं कर सकते हैं तो आप स्वयं ही ( वशते कि आप काननी तौर पर बालिग बों) आकर कल २ बजे दिनके लेखबद्ध शास्त्रार्थ के लिखित नियम तय कर जावें ताकि व्यर्थ नोटिसबाजी में समय नष्ट न हो। यदि कल २ बजे तक आप प्रार्यसमाजमें प्राकर शास्त्रार्थ के नियम आदि न तय कर जायंगे तो समझा जायगा कि आप लोग शास्त्रार्थ करना नहीं चाहते केवल विज्ञापनबाजी करके पलिकको धोखा देना चाहते हैं ।
जयदेव शर्मा मन्त्री-आर्यसमाज अजमेर .. ता०६-9-१२
इस कारण कि मार्यसमाज ने अपने उपर्युक विज्ञापन में लिखित शा. स्वार्थ करना स्वीकार करलिया था और उस के नियम तय करनेके अर्थ इम लोगों को कल ( दूसरे दिन ) आर्यसमाजभवन में बुलाया था अतः सभके इस विज्ञापनका उत्तर विज्ञापन द्वारा प्रकाशित नहीं किया गया । परन्तु उसके इस विज्ञापनमें कई भामक वातें हैं अतः सर्व साधारण के हितार्थ उनका 3त्तरप्रकाशित किया जाता है । आर्यसमाजका हम लोगों पर मिथ्या बोलने और लिखनेका व्यर्थ ही गुरुतर दोष लगाकर प्रथम आक्षेप यह है कि हम लोग आर्यममाजको शास्त्रार्थसे टालमटोल करनेका व्यर्थ ही दोषारोपण करते हैं वह तो शास्त्रार्थको सर्वदा तैय्यार हैं। परन्तु विचारनेकी बात है कि कोई यह कहदे कि मैं इस कामको तैय्यार हूं और निस्प्रयोजन उसमें अहहे लगावें तो क्या वह उसके अर्थ तैय्यार समझा जा सकता है। देखिये शा. सासे टालमटोल करने का दोष आर्यसमाज पर लगानेके यह निम्न सहेत शब्द हैं और विचारिये कि वे कितने सत्य हैं । "प्रब जो आर्यसमान किसी योग्य प्रतिष्ठित अजमेर निवासी की ओरसे शास्त्रार्थको जिम्मेवारीका विज्ञापन प्रकाशित होने पर शास्त्रार्थ करना चाहती है सो यह उसका डबतेहए को तिनके की शरण लेने के समान निरर्थक है और इससे उसकी असमर्थता ही प्रगट होती है क्योंकि जब कुमारों के प्रबन्ध द्वारा ही श्रीजैन कमार सभा अजमेर का प्रथम वार्षिकोत्सव, आर्यसमाजका श्रीजैनतत्वप्रकाशिनी सभासे तारीख ३० जून का मौखिक शास्त्रार्थ निर्विघ्न और शान्ति पूर्वक समाप्त हो गया तो अब डरने का कारण प्रगट करना सिर्फ टाल टूल ही है।"