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( ५६ ) - तारीख ३० जन और ६ जौलाई को जो दो मौखिक शास्त्रार्थ यथाक्रम स्वामी दर्शनानन्द जी सरस्वती और पंडित यज्ञदत्त जी शास्त्री से श्रीजेनतत्वप्रकाशिनी सभाके साथ ईश्वर के सृष्टिकर्तृत्त्वके विषयमें बड़ी सफलता और जैनधर्म को प्रभावना से हुये थे कदाचिब उसीसे समाज ने यह पूर्व ही अनुमाग बांध रक्खा होगा कि जैन लोग शास्त्रार्थ को टाल देंगे। शेम ! ___स्वामी दर्शनानन्द जी और पंडित यज्ञदत्त जी शास्त्री ने हम लोगों की दलीलोंका खण्डन करते हुये ईश्वर को सृष्टिकर्ता कैसा सिद्ध किया यह उस समय में उपस्थित सज्जन या उनके शास्त्रार्थ को पढ़ने और सुनने वाले सज्जनों को भली भांति प्रकट है। यदि सिद्ध ही कर पाते तो यों लिखित शास्त्रार्थ में समाज की ओरसे अडङ्गे लगाये जाकर टालमटोल क्यों की जाती।
पंडित दुर्गादत्त जी ने “जैनधर्म परित्याग" विज्ञापन क्यों निकाला इ. सको समाज का दिल हो जानता है और स्वयं पं० दुर्गादत्त जी के कहने से सर्व साधारण को भी अब अविदित नहीं है। विश्वास रहै कि सत्य बात अन्त में प्रकाशित हुये बिना नहीं रहती।
हम लोगों के विज्ञापनों का समाज ने केमा उत्तर दिया है वह दोनों ओरके विज्ञापनों को आमने सामने रखकर विचार पूर्वक पढ़ने वालोंसे छि पा हुआ नहीं है और न रहेगा। - जब समाज ने सर्व साधारणको यह वात प्रकाशित कर धोखा देना चा. हा कि जैन लोग लिखित शास्त्रार्थ से इन्कार कर गये तब हमको सर्वसाधा. रण के हितार्थ पुनः चेलेञ्ज देना पड़। न कि इस कारण कि आपके स्वामी दर्शनानन्द जी अजमेर रोड़ गये थे। स्वामी जी की विद्या और बुद्धिका तो हम लोग गत कार्तिक शुक्ला द्वितीया सम्वत् १९६८ विक्रमो के दिवश से जब कि इटावह आर्य समाजके वार्षिकोत्सवपर शङ्का समाधान के दिवस उनका कंवर दिग्विजयसिंहगीसे ईश्वर के सष्टिकर्तृत्वके विषय में उत्तर प्रत्यत्तर हुमा था। भलीभांति जानते थे और गत ३० जून को तो विल्कुल ही जान गये थे और इसीसे तो स्वामीजीको अपनी प्रतिष्ठाका बड़ा ख्याल था ॥
यदि हम लोगोंको शास्त्रार्थ करना मंजूर न होता तो श्रीजैनकुमारसभा के वार्षिकोत्सवके पश्चात् इतने दिन खोकर समाजके पीछे यों उस की सभी वातें मानते हुए क्यों पड़े रहते ॥