Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 74
________________ (७२) जल्प और वितरखा हैं। इस सूत्र पर उसके प्रसिद्ध विद्वान सामवेद भाष्यकार: परिवत तुलसीराम जी स्वामी महाराज लिखते हैं कि जिज्ञासुको मत्संरता और छठसे कभी इनका प्राश्रय न लेना चाहिये, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर तत्वको रक्षाके लिये ( जैसे खण्डको रक्षाके लिये कांटोंकी बाड़ लगा देते हैं) इनका प्रयोग करना चाहिये। बुधवार १० जुलाई १८१२ ईस्वी । मार्यसमाजके तारीख को प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार हमारी ओर के चारो नियुक्त प्रतिनिधि सेठ ताराचन्दजी व लाला प्यारेलाल जी जौहरी ईसान नसीरावाद तथा सेठ पोचमग्रजी वैद व सेठ पत्रालालजी रईसान अजमेर अाज दिनके साढ़े दस बजे ही प्रार्यसमाजके प्रतिनिधि वाबगौरीशं. करजी वैरिष्टर एटलाके वगले पर आर्यसमाजके दूसरे प्रतिनिधि वाबू मि. द्वानलाल जी वकील सहित मैजिष्ट्रेट से लिखित शास्त्रार्थक विषयमें प्राजाले. नेकी दरखास्त दनको पहुँच गये वातचीत शुद्ध होने पर न मालूम क्यों मा. समाजके प्रतिनिधियों ने मैजिष्ट्रेटसे आजा लेने से इन्कार करदिया और यह कहा कि प्रबं उसको कोई प्रावश्यकता नहीं क्योंकि अजमे में अब शास्त्रार्थ करना ही हम नहीं चाहते । हमारे प्रतिनिधियोंने अंजमेरमें ही लिखित शास्त्रार्थ करनेके अर्थ बहुत कुछ कहा सुनी पर भार्यपमाजके प्रतिनिधियोंने टससे मस न की। जब हमारे प्रतिनिधियों ने देखा कि इतनी मेहनत और इतने दिन इन्तिजारी में खर्च करने पर भी हम लोगों का अभिलषित शास्त्रार्थ नहीं होता तो 'भागे भतकी लंगोटी ही सही' इस न्यायके अन पार उन को एक ऐसे लिखित शास्त्रार्थके अर्थ जो कि इंदावह और अजमेर में वैठे बैठे हो सके वही कठिनतासे तैय्यार किया और उनके निम्न नियम तय हये ॥ १ यह शास्त्रार्थ आर्यसमाज अजमेर और जैनतत्त्वप्रकाशिनी सभा इ. टावके मध्य में होगा . .. . २ विषय "ईश्वर सृष्टि का कर्ता है कि नहीं जिसमें भार्यसमाजका यह पक्ष है कि सृष्टि का कर्ता ईश्वर है और जैनमहाशयोका पक्ष यह है कि ईश्वर सृष्टिका का नहीं । शास्त्रार्थ नागरीभाषामें होगा' हर एक पक्षकी ओर से एक २ प्रश्नपत्र जिस पर मन्त्रीके हस्ताक्षर लेंगे

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