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'नहीं। परिणामन नित्य पदार्थों में होता ही नहीं पानीको गतिको पत्थर रोकता नहीं अतः पत्थर बलवान् नहीं हो सकता । कोई पदार्थ जन्य न हो और परिणामन शील हो इसका एक उदहाण दो। ___ वादि गजकेसरी जी-चुम्बकका उदारण इस अर्थ दिया गया है कि जिस पदार्थका जो स्वभाव है उसमे विरुद्ध क्रिया उसमें हो नहीं सकती। यदि हो तो उसका निमित्त वह पदार्थ नहीं कोई अन्य ही है ऐसा समझना चाहिये। पूर्व ही आपके प्रकृति परमाणु ओंका उदाहरण देकर यह सिद्ध किया जा चका है कि वे परिणामन शील होने पर जन्यत्त्वसे रहित हैं। यह मामना ठीक नहीं कि नित्य पदार्थों में परिणमन होता ही नहीं। परिणामन तो आपके ईश्वरमें भी होता है क्योंकि वह कभी सृष्टि को बनाता और कभी विगाहता है। हमारा प्राक्षेप अभी वही चला जाता है कि यदि ईश्वर सब मोरोंसे अपनी क्रिया प्रलयकाल में समानता से देता है तब तो कोई परमाण मिल नहीं सकते। यदि ऐसा मानों कि ईश्वर एक पोरसे ही अपनी क्रिया देता है तो भी वह मिल न सकेंगे वरन एक ही दिशामें वरावर दौड़ते चले जावेंगे ॥
स्वामी जी-ईश्वर सर्वव्यापक है । सब पदार्थ उसके अन्दर हैं। अन्दरके पदार्थों में दिशाभेद नहीं । एक ओरसे हरकत नहीं दी जा सकती। रूपा. न्तर प्रतिपत्तिपरिणाम, अवयवान्तर प्रतिपत्ति विकार। प्रकृति प्रवस्फा है, द्रव्य नहीं * । ईश्वरमें रूप नहीं अतः रूपान्तर नहीं।
- स्वामी दर्शनानन्द जी प्रकृतिको द्रव्य न मानकर एक अवस्था मानते हैं। परन्तु विचारने का विषय है कि अवस्था किसी द्रव्यको ही हुआ करती है अतः यह प्रकृति किस द्रव्यकी अवस्था है। जो यह कहो कि प्रकृति सत, रज, तम इन तीन द्रव्यों की अवस्था है और सत, रज, तन ये तीनों द्रव्य है संयोग, विभाग, लघुत्व, चलत्व गरुत्वादि धर्मवाले होनेसे सो ठीक नहीं क्योंकि वैशेषिकने द्रव्योंकी गुणनामें इनको स्थान नहीं दिया बरन इसके बिरुद्ध इनको गुण ही माना है और स्वयं स्वा. मीजी अपने सांख्य दर्शन भाज्यमें सांख्यकै ६९ वें सूत्र “ सत्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः इत्यादि के भाष्य में "सत्वगुणप्रकाश करनेवाला रजोगुण न प्रकाश और न आवरण करने वाला तमोगुण आवरण करने वाला जब यह तीनों गुण समान रहते हैं उस दशा का नाम प्रकृति
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