Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 116
________________ ( १९४ ) mamimaraemmmmmmmmmmmmmmmmm न्या याचार्य जो-अस्मत्प्रदत्त दोषपरिहारश्च न विहितो भवद्भिः । कारणकार्ययोाप्तिनं तु कर्तृभर्ययो किं च कृषाणकृत व्रीह्यादौ सकतक. त्वेपि वन्यवनस्पतिघासादो कर्तुरभावेन हेतुर्व्यभिचारी च हेतुतावच्छेदकसम्बधेन हेतुता वच्छेदकावच्छिन्नाधिकरणता यत्र तत्रैव साध्यतावच्छेदक सम्बंधावच्छिन्न साध्यतावच्छेदकावच्छिमाधिकरणता यदि भवेत्तस्यैव सम्यग्घेता कार्यत्वहेतोश्चैवं सम्पग्घेतुत्वं नास्ति । (भावार्थ) हमारे दिये दोषोंका परिहार मापने बिलकुल नहीं किया। कारण और कार्य की व्याप्त है। जहां जहां कार्यत्व है वहां वहां कारण ज. न्यत्व है ऐसा नियम तो है किन्तु जहां जहां कार्यत्व है वहाँ २ कर्तासे न.. न्यत्व है ऐमा नियम मानोगे तो जङ्गलमें घास जड़ी बूटी किम कर्ताको व. नाई हैं ऐसा दिखलाइये। जहां हेतु रहै वहां साध्य रहै उसको सङ्केतु कहते हैं ऐसा सद्धेतु यह कार्यत्व नहीं है । शास्त्री जी-यत् भवद्भिः प्रतिपादितं खीक्रियते । ईश्वरप्रेरितोऽयं जनः सुख दुःखं भनक्ति कार्यकरणे तु स्वतन्त्रः जीवात्मा किन्तु तत्फलभोगे पर तन्त्रो यथा चौरः चौर्य कृत्वा कारागृहे मजिष्ट्रेटप्रेरितो गच्छति ॥ (भावार्थ) जो आपने कहा हम स्वीकार करते हैं। ईश्वरको सिद्धि में हम दूसरा प्रमाण देते हैं कि जीव कर्म करने में स्वतंत्र है लेकिन फल स्वयं नहीं भोगने चाहता जैसे कि चोर चोरी करने में स्वतन्त्र है लेकिन चोरीका फल जेलखाना मजिष्ट्रेट द्वारा भोगता है। इसी तरह मुख दुःख फल भुगाने वाला ईश्वर है। न्यायाचार्य जी-यदि जीवः कर्मकरण स्वतंत्रः फलभुक्तौ च परतन्त्रो भवे. दत्र ब्रमः कस्यचिच्छेष्ठिनो धनापहरणरूपं फलं देयं स्यात्तत्रेश्वाः स्वयमा. गत्य तु नार्थमपहरेत् किन्तु चौरद्वारा फलमुपभोजयति तदा चौरः किमर्थं का. रावासगृहमुपभोजयेत् चौरस्य च कर्मकरणे स्वातन्त्र्यपरिहारश्च यदि चौरः स्व. तन्त्रतया प्रेष्ठिधनापहरणं कुर्याचेत् तदा ईश्वरेण किं फलं भोजयितं फलभक्ती पारतन्यपरिहारश्च वभक्षायां पिपासायां भोजनं पानं च विषभक्षणेन मरणादिफलं च कर्मकर्तः फलभोगकर्तुश्च सामानाधिकर गयं द्योतयन्ति । (भावार्थ ) यदि जीव कार्य करने में स्वतंत्र है और फम भोगने में परतंत्र है यहां हम यह कहते हैं कि किसी सेठके सब धनशा चाया जाना ऐसा फल भोगना है ईश्वर तो स्वयं धन चुराता नहीं किन्तु चोरके द्वारा धन चुरवावैगा तो चोरको जेलखाना नहीं होना चाहिये क्योंकि चोरने ईश्वरको प्रेरणासे धन चुराया था अतः चोरकर्म करने में स्वतंत्र है यह वात भी वाधि

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