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है. क्योंकि जब तक चालके ऊपर धानका डिल्मा रहता है तभी तक चावल बराबर सम्पर्क होता रहता है और उसके दूर हो जानेपर कदापि नहीं उसी प्रकार जब तक जीव के ऊपर कर्मरूप दिल्मा लगा हुआ है तभी तक वह जन्म ग्रहण करता है और उनके अभाव में कदापि नहीं । श्रमी छापने कहा था कि अग्नि चारों ओर से हरकत देता है और वाकड़ते हैं कि 'चावलोंको हरकत जो मिलती है वह भी अन्दरकी हरकत है । इन दोनों में ठोक कौन ? महात्मन् | जरा विचार कर हमारे भोंक उत्तरः दीजिये ।
स्वामीजी- -इच्छा कर्मके, निमसे उत्पन होती है इसलिये इस घर जाती है । अग्नि में इच्छा-विषम है । अनि एक है, दो नहीं । वहां के धर्क्ष्य नहीं हो वहां वैषम्य नहीं । जीब और ईश्वर तिसे विभु हैं । परमह बहुत हैं, परन्तु श्रग्नि एक है। वैधर्म्यका विषय खुश है अतः वैषम्य नहीं गति देने की ईश्वर और छग्नि दोनों में एकता है । गति या तो अग्निसे प्रायेगी वा ईश्वरसे। इसी लिये अग्निम शब्द ब्रह्म के नाम में भी श्राता है । अग्नि और ईश्वर के धर्म विषम हैं यह किसी शास्त्र से सिद्ध करिये ।
स्वामी दर्शनानन्दजी के इतना कह चुकने पर पांच बजने में पांच मिनिट शेष रहे । शास्त्रार्थ पांच बजे तक होना निश्चित हुआ था और यह शेष पांच श्रार्यसमाजकी मिनिट नियमानुसार बादि गजकेसरीजीके हिस्से के थे परन्तु ओरके प्रग्रेवर बाबू मिटूनलालजी वकीलने यह पांच मिनिट सबको धन्यवाद आदि देने को अपने अर्थ मांगे। यद्यपि आफ्से यह कहा गया कि वादि गजकेशरीजीके कह चुकने पर आप पांच नहीं वरन दस मिनिट अपने अर्थ ले सकते हैं क्योंकि ये पांच मिनिट नियमानुसार वादि गजकेसरीजीके हिस्से के हैं परन्तु आपको इतना धैर्य्य न हुआ और आपने यही पांच मिनिट अपने अर्थ देने को कईबार ढूंढ़ अनुरोध किया। आपके ऐसा करने से यह प्रतीत होता था और है कि अन्तिम वक्तव्य स्वामीजीका ही रहे और पव्लिक की यह बात प्रगट हो कि स्वामीजीका प्रश्न वादि गजकेसरीजो पर खड़ा रहा और वादि गजकेसरीजीने जो कुछ प्रक्षेिप किया था उसकी उत्तर स्वामीजीने दे दिया क्योंकि यदि ऐसा उनका अभिप्राय न होता तो वादिगजकेसरीजीके हिस्सेके ही पांच मिनिट क्यों लेते उनके वाद के मिनिटों में आपको क्या हानि थी । यद्यपि हम लोग बाब साहबकी इस चालको भली भांति जानते थे प रन्तु यह जानकर कि पब्लिक ( जैसा कि बाबू साहब समझते हैं ) इतनी