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दूपरे पक्ष के मन्त्री के पास भेजा जावेगा और उत्तर भी मन्त्री ही के हस्ताक्षरी भेजे जावेंगे। आर्यममाजको प्रोरसे पं० जयदेवजी शर्मा मस्त्री होंगे और श्री जैनतत्व काशिमो सभा इटावाकी ओरसे लाला चन्द्रसेनजी वैद्य मन्त्री होंगे।
५ प्रश्नपत्र में एक ही प्रश्न होगा ॥
६ प्रश्नोत्तर होके मन्त्रीके पास १० दिन तक पहुंच जाने चाहिये और वे रजिष्टरी द्वारा भेजे जावें ॥ ..' 9 प्रथम प्रश्न पत्र आपसमें ता० ११ जलाई १९१२ को शामके ५ बजे तक एक दूसरे के पास पहुंच जाने चाहिये ॥
प्रश्नोत्तों को छपानेका प्रबन्ध हरएक मन्त्री अपने पाप करें।
कहीं ऐसा न समझा जाय कि जैनियोंने ही अजमेर में लिखित शास्त्रार्थ करनेसे इन्कार कर दिया इस कारण इस शास्त्रार्थ को सूचनाका वि ज्ञापन शार्यममाजके मन्त्री की ओरसे निकलना निश्चित हुा ।
गुरुवार ११ जुलाई १९५२ ईस्वी । आज प्रातःकाल १० वजे कलके निश्चपके अनुसार भार्यममाजसी ओर से निम्न विज्ञापन प्रकाशित हुआ। .
विज्ञापन । सर्व साधारणाको विदित हो कि जैसा कि विज्ञापन ता. 6 जुलाई १९१२ को आर्यममाज अजमेरकी तरफसे प्रकाशित हुआ था उसके अनुसार सेठ ताराचन्दजी व लाला प्यारेलालजी रईमान नसीराबाद तथा सेठ चौथमल जी वैद्य व सेठ पन्नालालजी भैंसा रईसान अजमेर व बाब गौरीशङ्कर जी बैरिष्टर एटला और पं० मिट्टनलाल जी भार्गव वकील भाज १० जनाई सन् १९९२ ई० को दिनके ११ बजे बाबू गौरीशङ्कर जी बैरिष्टरके मकान पर एकत्रित हुए और सर्व सम्मतिसे यह निश्चय हुआ कि शास्त्रार्थ लेखबद्ध केवल पत्र द्वारा निम्नलिखित नियमानुसार होः
१-यह शास्त्रार्थ आर्य्यममाज अजमेर और श्री जैनतत्त्व प्रकाशिनी सभा इटावाके मध्य में होवे ।।
२-विषय "ईश्वर सष्टिका कर्ता है कि नहीं” जिममें आर्य समाजका यह पक्ष है कि सृष्टिका कर्ता ईश्वर है और जैन महाशयोंका पक्ष यह है कि ई. श्वर सृष्टिकर्ता नहीं है।
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