Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 62
________________ - हम लोग समान मन्दिरसे अपने प्रांप उठकर नहीं चले पाये धरना र्यसमाजी प्रधान वैरिष्टर साहब निकल-मातेके जनरली हुक्म। .. . पहिला प्रार्यसमाजकी सभ्यता और उसकी शाखाके अर्थ तैय्यारीको इसी बातसे असी मांति जानती है कि वह इसके समुशयको अमरप और इला गुल्ला मचाने वाला करार देकर उनकी तौहीन कर रहा है और किसी को शास्त्रार्थ श्राने न देकर कुलियामें गुड फोड़ना चाहता है। जो हो । आज प्रातःकाल श्री जैनतत्त्व प्रकाशिनी सभाके कार्यकर्तागण । उनके उपर्युक्त दोनों विज्ञापनों में प्रकाशित तीसरे नियमपर किसी प्रकार शास्त्रार्थ चलानेको सहमत होकर पुनः शार्यसमाज भवन में शास्त्रार्थक शेष नियम तय करने को गये जिसपर समाजके मन्त्री जी ने सन्ध्याको हाजिर होने का हुक्म दिया पर सन्ध्याको हम लोगोंके पहुंचने पर इस विषय में कुछ बात चीत करने से बड़ी रुखाई के साथ इन्कार कर दिया। .. आर्यसमाजके उपर्यक्त दोनों विज्ञापनोंके उत्तरमें सर्व साधारणके चम निवार्थ निम्न विज्ञापन प्रकाशित हुमा। ॥ वन्दे जिनवरम् ॥ आर्यसमाजकी झूठी सफाई। | " - सर्व साधारण सज्जन महोदयों की सेवामें निवेदन है कि आर्यसमाजके ६ जुलाईके "शास्त्रार्थ को सर्वदा तय्यार" शीर्षक विज्ञापनके अनुसार मा. री श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी सभा कल १॥ बजे दिनके प्रार्यसमाज भवनमें लिखित शाखाके नियम तय करने के लिये गई थी और सर्व नियमोंका तय करना आर्यसमाजकी इच्छानुसार ही रखने पर भी माघ घंटे में तय हो. जाने वाले सब नियम मार्यसमाजको टालमटोलसे ६ घंटे में भी तय न हुए। केवल तीन ही नियम तब हो पाये जो कि निम्न लिखित हैं:-.. लिखित शास्त्रार्थके नियम । . . ९-यह शास्त्रार्थ भार्यसमाज मलमेर और श्री जैनतत्य प्रकाशिनी सभा ढाबहके मध्यमें होगा। .. ... . .... २-शाचार्य पकिनक तौर पर नपोंके नौहरे में होगा और उसका यथोचित प्रबन्ध प्रायमसाज करेगा। - ३-शाखाका विषप यह है कि "ईश्वर सृष्टिका कर्ता है या नहीं।

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