Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 69
________________ र्जीके मुत्राफिक शान्तिपूर्वक शास्त्रार्थ कर पाना शार्यसमाजियों की धीरज और गम्भीरताको प्रकट करता है न कि सरावगी भाइयोंकी शान्तिको, जो अपनी सभाकी बदनामीका खयाल न करके तालियां पीटनेसे न चूके. तब मार्यसमाजमें भाकर कन चुप रह सकते थे। - विज्ञापनोंमें कठोर शब्दोंका प्रयोग पहिले हमारे सरावगी भाइयोंने से " मान की मरम्मत" ,'मार्य नमाजको ढोलकी पोल" "बादकी खाज, इत्या. दि अनेक कटु वाक्योंसे शुरू किया, अब समाज पर ही लगाम लगाना दू. सरे की आंख में तिनका देखना और अपनी आंखका शहतीर तक भी न दे. खने के समान है॥..... ....... - मेरे ( मन्त्री ) तथा बा० गौरीशंकरजी बैरिस्टरके बातचीत न करने की शिकायत सर्व या अनुचित है, क्योंकि जब एक ओर वो बातचीतका ब. हाना किया जावे और दूसरी ओर उसके विरुद्ध नोटिस छपवा मर बांटेगावें तो फिर कौन समझदार यादमी ऐसी बातचीत पर विश्वास करेगा। यदि प्रतिष्ठित सरावगी भाई शावार्थ करानेको उद्यत हुए हैं तो वे प्रतिष्ठित मात्र ही कल ठीक ११ बजे ( दिनके) श्रीमान् बाबू गौरीशङ्करसी बैरिस्टर एटला के बंगले पर पधार कावें और श्रीमान बा० मिट्ठनलाल जी. श्रीमान् बा० गौरीशंकरनीसे शास्त्रार्थ सम्बन्धी उचित कार्यवाही करलें। ___रहे मिथ्या भिमानके यह वचन कि "हम लोग उसको शास्त्रार्थसे छोहने वाले नहीं हैं. बड़ी हसी दिलाने वाले हैं। . महाशय : यह लिखते वक्त शायद आपको ध्यान नहीं रहा कि प्रार्य. समाज तो सदैव भापकी सेवा करनेके लिये यहीं मोजद है फिर इसके लिये ऐसा लिखना अपनी लड़कपनका परिचय देना है। हमारे सरावगी भाइयों को अपने नोटिसों में यह बतलाना था कि वे उन चारों बातों इंटे या नहीं, बदिने ७ तारीख को ही तारीखमा शाखार्य मंजूर कर लेते तो उसका पा, बिगह जाता, मुख्य बातको कोड गर्भभरी भाषा उनकी ही कमजोरी दिखलाती है, बार्यसमाज शास्त्रार्थसे पीछे हटना नहीं चाहता, परन्तु जो वह नहीं चाहता वह यह है कि उसे कधमधाड़ा पसन्द नहीं, शालार्थ शान्तिसे होता है जो बहुत भीड़ भाड़में कायम नहीं रह स. कती । सव विधारशील पुरुष भी यही कहते हैं जैसा कि राय सेठ चांदमल । - SEEN'SS

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