Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 64
________________ ( ६२ ) तों को देखा था तथा हमारे और उनके विज्ञापनों को गौर से पढ़ा है उनको भली प्रकार प्रकट होगया होगा कि सच्चा कौन और झूठा कौन । छः घंटे में जो जो वहस हुई उस सबको हमारे सरावगी भाइयोंने अपने विज्ञापन में से उड़ा दी परन्तु फिर भी यह उन्हें स्वीकार ही करना पड़ा कि उन्होंने तारीख़ के शास्त्रार्थ को मंजूर नहीं किया सच्ची बात वही है जो कि समाज के विज्ञापन में छाप दी गई है कि चारों बातों में से इन्होंने एक भी बात मंजूर नहीं की. पक ୯ क्या खूब अब सरावगी भाइयोंने द तारीख़ की शानको ५ बजे यह प्र काशित कर अपनी सफाई बताई है कि हम गाये समाजियों की मर्जी के मु प्राफिक तारीख़ को ही शास्त्रार्थ करमा मंजूर करते हैं । क्यों महाशय ! क्या ह तारीख़ को शास्त्रार्थ करने का आर्य समाजियोंका कोई मुहूर्त था ? नहीं, 9 तारीख़ को ही यदि यह कह दिया जाता कि इमल तारीख़ ही मंजूर क रते हैं तो क्या सरावगियों का कुछ बिगड़ जाता । असली बात यह है कि प्रार्थ्य समाज १ दिन बीच में इसलिये लेता था कि मजिस्ट्रेटसे आज्ञा ले. कर मोड़ भाड़ का ऊधम रोकने के लिये पुलिस का पूरा २ प्रबन्ध कर लेता, यह सरावगी भाई चाहते नहीं, वे तो यही चाहते हैं कि इन्तज़ाम के लिये समय न दिया जाय और शास्त्रार्थ के समय खूब भीड़ भाड़ कर ऊधम मचा कर शास्त्रार्थ से सहज ही में पीछा छुड़ायें । जब जब के शास्त्रार्थ को टाल हुल्लड़ और असभ्योंकी नाई उदंगल करने से उनको सारा शहर धिक धिक कर रहा है तो शर्म उतारने के लिये अब फिर शास्त्रार्थ के लिये ( उसी नाबालिग लड़के की आड़ में ) विज्ञापन देते हैं परन्तु मालूम रहे कि हमारे सरावगी भाइयों की करतूत इस हद्द त बढ़गई है कि कोई सभ्य समाज उनसे बिना मजिस्ट्रेट की आशा और पुलिस के प्रबन्ध के अब बात चीत करना पसंद नहीं करेगा इसलिये यदि सराबगो भाइयों को अब भी शास्त्रार्थ करना मंजूर है तो अपने में से २ प्रतिष्टित अजमेर निवासियों से बाबू मिट्टन लाल जो वकील तथा बा० गौरीशं करजी बैरिस्टर के नाम ( जिनको समाज ने अपनी ओर से इस कार्य के लिये नियत कर दिया है ) पन भिजावें । यह चारों महाशय मिलकर म. जिस्ट्रेट से छाज्ञा लेकर सारा प्रबन्ध कर लेवें मार्य्य समाज राजकीय निय

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