Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 43
________________ (४१) । तक सारी भीड़ न हट गई, बैठे भी रहे परन्तु जैनतत्व प्रकाशिनी सभा के सम्प शास्त्रार्थ के लिये राजी नहीं हुए-पर नहीं हुए, बल्कि उनके मन्त्री वैद्य चन्द्रसेनजी ने तो अपनी सभ्यताका यहां तक परिचय दिया कि आगे होकर लोगोंसे तालियां पिटवाई और समाके लिये नादान दोस्तका काम किया, क्योंकि इस कामसे सरावगियों की ही गिन्दा हुई ॥ . गोदड़ बह है जो वार २ कहने पर भी मुकाबले के लिये तय्यार नहीं और दूर ३ से भवकियें बताते रहें कि देखो मैं सिंह हूं। ता० ३ की रातको ११ बजे विज्ञापन बांटे जिसका समाजने ४ तारीखको दिनके १० बजे पहिले ही उत्तर पवा दिया और सिंहराजको मन्दिरों में ढूंढा, कन्दिोंमें खोजा, ज्ञान को दुर्वीमसे मुक्ति शिखरको शिला पर दृष्टि फैलाई, परन्तु सर्वत्र पोल ही पोल नजर आई। मंचं दो दिन बाद फिर कुछ होशं सम्भाल ६ तारीखके विज्ञापन पर ५ तारीख़ छपवा कर १२ घंटे की मियाद दे शास्त्रार्थ को टाला है (यह विज्ञापन ६ ता० को १ बजके ९० मिनटपर मन्त्री जैनकुमारसभाको पत्र लिखने पर प्राप्त हुमा ) इसीलिये तो हमने लिखा था कि यह छोकरोंका सा खेल कर रक्खा है किसी ज़िम्मेवर प्रादमी की ओरसे नोटिस होना चाहिये, परन्तु यह प्रा. जतक नहीं किया और मन्त्रीजी अपना छोकरा होना स्वीकार करते हैं। ठीक है महाशय ! आप अभी बालक हैं कुछ दिन संसारकी हवा खाइये यह अभिमान प्रापको गढ़े में गिरायेगा। स्वामीजी क्यों चले गये ?" यही भापको बड़ी भारी सभ्यता का नमना है। इसके विषय में श्राप कुंवर दिग्विजयसिंहनीसे पूछलें कि क्या वे स्वामी[ जीसे बीमों मनुष्यों के सामने यह नहीं कह पाये थे कि "महाराज मन शा वार्थ नहीं हो सत्ता प्राप तो माधु हैं, महीने भर तक ठहर सक्त हैं, परन्तु हमें जाना है, वार २ उत्तर मिलने परभी यह कहे जाना कि "ईश्वरके सष्टि. कर्तृत्व विषय का कछ उत्तर नहीं मिला, इसका क्या इलाज है। - सरावगी लोगों को परिणाम और गुणमें भेद मालूम नहीं है, ईश्वर सत्ता को क्या समझ सक्त हैं "फिर नोट करलें कि प्राय ईश्वरक्रिया का ही फल है उसका विरोधी नहीं,। ईश्वर सबका कर्ता स्वयं सिद्ध है क्योंकि जो चीज़ बनी हुई है वह विना | - -

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