Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 42
________________ - ( ४० ) शास्त्रीजीका पत्र प्राप्त होते ही सभापतिजी ने उनको उसी समय शाखार्य करने की माता प्रदान की और कंवर साहब ने अपना व्याख्यान सं. कोच लिया। __म्यायाचार्य परिडत माणिकचन्द जी द्वारा श्री जैनतत्वप्रकाशिनी सभा और कार्यसमाजो शाखी पति यदत्तजीसे जो शास्त्रार्थ संस्कृत भाषा में ईश्वरके सृष्टिकतत्व के विषपमें मोखिक रीति पर हुणा वा इस रिपोर्टके प्र. न्समें परिशिष्ट नम्बर (ख) में प्रकाशित किया जाता है॥ ... रात्रि अधिक व्यतीत हो जाने के कारण सर्व उपस्थित सजान सभ्य महोदयों की प्रामानुसार शाखा बन्द किया गया और जय जयकार ध्वनि से सभा समाप्त हुई। . ... आज रात्रिको मिन विज्ञापन मार्यसमाजकी ओरसे प्रकाशित हुआ। . . ओ३म् . ... ... ..... शास्त्रार्थ को सर्वदातम्यार। . यह कितनी हंसीकी बात है कि इस रोशनीक जमाने भी हमारे कुछ सरावगी भाई यह समझ बैठे हैं कि हम सर्वसाधारणको मांखों में जिस प्र. कार चाहेंगे धूल डाल देंगे, पर यह खयाल उनका सरासर असत्य है। मिथ्या बोलना व लिखना ऐसी खोटी भादत है कि वह मनुष्य को प्रागा पीछा नहीं सोचने देती और एक झूठके सिद्ध करनेके लिये हमार झूठ बुलवाती है, इसी लिये महाकवि श्री स्वामी तुलसीदास जीने लिखा है कि: जाको प्रभु दारुण दुख देही, वाकी मति पहिले रिलेही। छपे हुए विज्ञापनकी मौजूदगी में यह लिखना कि भार्यसमाज शास्त्राच से टालमटोल करता है, कितना सत्य है। सब लोग भले प्रकार जान नये हैं कि शास्त्रार्षसे मुंह सरावगी लोग छिपा रहे हैं, जो वार २ करने वलिखने पर भी राजी नहीं हुए या भार्यलोग जो विना नियम तय किये हुए दी धमसे शास्त्रार्थके लिये जाकदे। अब हज़ार, माइम्बर रचो कि सभाके प. श्चात् स्वामी जीने शास्त्रार्थने लिये नहीं कहा और फिर उदकर चले गये, परन्तु जो लोग वहां मौजद थे वे भले प्रकार जानते हैं कि स्वामीजी और वा० मिट्ठनलाल जी वकीखने एक बार नहीं कई वार शाखार्य जारी रखने के लिये कहा और स्वामीनी वहां एकदम नहीं लाये किन्तु कई मिनट तक जब -

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