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(४५) नहीं कि वह कब समाजका मुकाविला करनेसे हट गये जिस से कि उस को ऐसा भम हुश्रा । तारीख ४.को सिंहराजजी सभाके दौरे पर होनेसे नसीरावाद में गर्ज रहे थे। नहीं जानते कि समाजको उन्हें उस दिन मन्दिरों कन्दिरों और मुक्ति शिषर पर खोजने की ऐसी क्या आवश्यकता पा पड़ीथी जिससे कि उसने ऐसा कष्ट किया। महात्मन् ! उसको जो मन्दिरों, कन्दिरों और मु. क्ति शिषर पर सिवाय पोल ही पोलके और कुछ नजर नहीं भाता उसका कारण उनके दुर्वीनका भट्टापन है । यदि यथार्थ में उसको वस्तुका स्वरूप दे. खना और जानना है तो उसे अपनी पहिलेको रद्दी दुऊनको फेंककर सबसे अच्छी दु:नकी परीक्षा कर खरीदना चाहिये तब उसको सब यथार्थ स्वरूप जात होने लगेगा और हो जायगा ॥ __पांचवां दोष६ तारीखके विज्ञापनपर५तारीख छापनेका है। महाशय वर! निस्सन्देश ५ तारीखको प्रेसोंमें छुट्टी होनेके कारण विज्ञापन रातोंरात ५ता. रीख को बापा जाकर ६ तारीखके प्रातःकाल चार बजे प्रकाशित हुमा । ऐसी दशामें क्या समाज चाहती थी कि हम उस ५ तारीखके लिखे और छापे जाने वाले विज्ञापन पर झूठमूठ ६ तारीख छपा मारते । विज्ञापन तो उसके पास ६. तारीखको प्रातःकाल पांच बजे ही पहुंच गया था, पर हमने उसकी उससे रसीद न लिखायो इससे वह चाहे जैवजे अव उसका पहुंचना प्रकाशित करें।
छठवां दोष श्रीजैनकुमार सभा के मन्त्री बाबू घीसूलाल जी अजमेरा के नावालिगपनेका है। मित्रवर ! वाब साहब नावालिग नहीं वरन काननन भी बालिग हैं। अजमेरा जी गवर्नाण्ट कालेज अजमेर में शिक्षा पा रहे हैं और शिक्षा प्राप्त करनेकी कुमार ही अवस्था समझी जाती है अतः वह अपने ही समान अन्य शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रादि जैन कुमारोंको सभाके मन्त्री हैं। समाज इस अवस्थामें उनको छोकरा नहीं समझ सकती। फिर भी पूर्व प्र. काशितानुसार ही “श्रार्यसमाज को विश्वास रखना चाहिये कि लौंडापन या लड़कान उनके ताल्लुक नहीं हुआ करता वरन अक्लके ताल्लुक हुआ करता है। किसका लौंडापन है यह कृत्योंसे पवलिकको स्वयं ही प्रगट है॥
सातवां दोष घीसूलाल जी के अभिमानपनका है सो मालूम नहीं कि उन्होंने कौनसी अभिमान की बात लिखी या कही । वह तो बराबर संसार में उच्च शिक्षा प्राप्तकर अनुभव और सभ्यता सीख रहे हैं।