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... (१) यदि "सर्वदा" शब्दपर ही प्राग्रह है तो समाज अभी करनेको तथ्यार है, परन्तु हमारे सरावगी भाइयोंने एक न मागी और जय जिनेन्द्र शादि शब्दोंसे शोर गुल मचाते हुए समाज भवनसे चले गये ॥
इसका व्यौरेवार हाल कल आपकी सेवामें पहुंच जायगा, अफ़सोस है | कि छः घण्टे की मेहनत पर अपनी हठधर्मीसे इन्होंने पानी फेर दिया। .
जयंदेव शर्मा, मंत्री आर्यसमाज, अजमेर ।
ता० ७-७-१८१२ समय १० बजे रात
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ओ३म् ॥ नकली सिंहका असली रूप प्रकट होगया । सर्व साधारणको विदित ही है कि कई दिनों से सरावगी भाइयोंने "ईश्वर सृष्टि का बनाने वाला नहीं है" इसपर कोलाहल मचा रक्खा था कि जिसपर स्वामी दर्शनानन्द जी व पं० यज्ञदत्तजी शास्त्री दो बार उनकी ही सभामें जाकर उनके दी नियमों की पाबन्दी करते हुए उनकी सब दलीलों को काटकर पब्लिकमें ईश्वरको सष्टिकर्ता सिद्ध कर पाये, जिसके प्रभावसे दो जैनियोंने जैनधर्म त्याग दिया, इससे चिढ़ कर हमारे सरावगी भाइयोंने कई कठोर विज्ञापन निकाले जिन मबका यथोचित उत्तर समय २ पर दिया गया और जब इन लोगोंने शास्त्रार्थ से इनकार कर दिया तो स्वामी दर्शनानन्द जी पंजाबको चले गये इनके जाते ही मैदान खाली समझ इन्होंने शास्त्रार्थ का चैलेञ्ज फिर दिया, जिसके उत्तरमें इनको नियमानुपार लिखित शास्त्रार्थ किमी मोअजिजज़ जिम्मेवर अजमेर निवासी द्वारा करनेको लिखा गया और अन्त में 9 तारीखकी दोपहरको आकर नियम तय कर लेनेको कहा गया, परन्तु इनको शास्त्रार्थ करना तो मंजूर ही न था केवल वितण्डा और हुल्लड़ मचाना था इस लिये सैकड़ों दुकानदारों को साथ लेकर समाज भवन में चले पाये जैसे तैसे दो नियम तो थोडीसी हुज्जतके बाद तय होगये, परन्तु इतनेमे ही स्वामी दर्शनानन्दजी महाराज पञ्जाबसे आगये बस अब क्या था देखते दीप बसे रह गये और सोचने लगे कि अब शास्त्रार्थ विना किये पीछा नहीं छूटेगा, अतएव प्रबन्धके नियमपर और सारा बोझा पार्यसमाज पर डालने लगे समाजने उसको इस शर्त पर मंजूर किया कि वह उचित प्रब