Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 34
________________ (३२) कोलस लगानेके लिये सर्वदा मीजद रहेगा। पण्डितजी जब तक जैनी थे तब तक ती शास्त्री और विद्वान् थे और अश्व जैनमतको तिलाञ्जलि देते ही कमलियाकत होगये, परन्तु इस मिश्याप्रलापको पलिक भली प्रकार समझती है। इन लोगोंने हरएक बातमें चालाकी सीखली है, पहिले भी शास्त्रार्थ को टाजनके लिये ॥ बजे चिट्ठी भेजी और विना उत्तर पाये ही दो बजे महत गर्मीका वक्त यह समझ कर मुकर्रर कर दिया कि न तो ऐसी कड़ी शर्त मंजूर होमी और न शाखार्य होगा। अब भी चालबाजी से विज्ञापन व्यावर में छपवाकर ३ तारीख की रातको बांटा और शास्त्रार्थके लिये ४ थी. ता. रोखका समय दिया है। यदि ऐसा ही होसला था तो शास्त्रार्थके पीछे जब स्वाभीजीने सभामें कईवार शास्त्रार्थ कई दिनों तक जारी रखनेके लिये कहा था तो इन लोगोंने क्यों इनकार कर दिया, खैर । यदि अब भी स्वामीजी के चले जानेके पश्चात् कुछ हौसला प्रागया हो और ३ वर्षको अबला जैनतत्त्व. प्रकाशिनी सभा, ३० वर्षके प्रौढ आर्यसमाजके वादको खाज मिटानेकी श. क्ति पैदा होगई है तो भार्यसमाजके लिये हमसे बढ़कर और खुशी क्या हो सकती है। हम डंके की चोट कहते हैं कि लेखबद्ध शास्त्रार्थके लिये हम घरवक्त तय्यार हैं श्राप शीघ्र ही प्रारम्भ करें, परन्तु इस जिम्मेवरीके लिये किसी योग्य प्रतिष्ठित अजमेर निवासीको ओरसे जिम्मेवरीका विज्ञा. पन होना चाहिये, लौंडों के द्वारा ऐसे काम पूरे नहीं हो सकते। जयदेव शर्मा मन्त्री प्रार्यसमाज अजमेर _ तारीख ४.७-१२ सन्ध्याको नसीराबादमें कुंवर रामस्वरूपजी रानी वाले रईस व्यावरके सभापतित्वमें सभोका अधिवेशन प्रारम्भ हुमा । श्राम नोटिस वटजाने और श्रीजेनतत्त्व प्रकाशिनी सभाको ख्याति हो जानेके कारण प्राज सभामें बड़ी भारी भीड़ थी। भजन होने के पश्चात् म्यायाचार्य पखित माशिकचन्दजी का मङ्गलाचरण रूपमें एक संक्षिप्त व्याख्यान हुमा। कंवर दिग्विजयसिंह जी घोर करताल ध्वनिके मध्य "मूर्तिपूजन, पर व्याख्यान देने को खड़े हुए । मापने ऐसी योग्यतासे मूर्तिपूजन सिद्ध किया कि लोग दङ्ग रहगये और वाह वाह करने लगे। इसके पश्चात् वादिगजकेसरीजीका "कर्ताखगडन,, पर ऐसी सरल और मिष्ट वासी उपाख्यान हुछा कि लोगोंके हृदयमें उसकी लीक सिंच. गयी और बड़े २ विद्वान् कवादियों को भी इस विषयमें शङ्कायें हो गयीं।

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