Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 24
________________ प्रशमरति २३ प्रमाद है ? बीता हुआ आयुष्य इन्द्र का भी वापस नहीं आता (तो फिर मनुष्य का वापस आने की तो बात ही कहाँ ?) ॥६४॥ आरोग्यायुर्बलसमुदयाश्चला वीर्यमनियतं धर्मे । तल्लब्ध्वा हितकार्ये मयोद्यमः सर्वथा कार्यः ॥६५॥ __ अर्थ : धर्म में आरोग्य, आयुष्य, बल, समुदाय (धन धान्यादि के) क्षणभंगुरहै । वीर्य (उत्साह) विनश्वर हैं, वो (आरोग्य, आयुष्य, बल, धनधान्य, वीर्य) पाकर हितकार्य में (ज्ञान, दर्शन, चारित्र में) मुझे सर्व प्रकार से (बिना थके) पुरुषार्थ करना चाहिए ॥६५॥ शास्त्रागमादृते न हितमस्ति न च शास्त्रमस्ति विनयमृते । तस्माच्छास्त्रागमलिप्सुना विनीतेन भवितव्यम् ॥६६॥ ___अर्थ : शास्त्रागम के अतिरिक्त [शास्त्र यानी आगम] अन्य कोई हित नहीं है और विनय के बिना शास्त्रलाभ नहीं है, अतः शास्त्रागम का लाभ चाहने वालों को विनीत बनना चाहिए ॥६६॥ कुलरूपवचनयौवनधनमित्रैश्वर्यसंपदपि पुंसाम् । विनयप्रशमविहीना न शोभते निर्जलेव नदी ॥१७॥ ___ अर्थ : पुरुषों की विनय और प्रशम से रहित कुल [क्षत्रियादि] रूप [लक्षणयुक्त शरीरादि] वचन [प्रिय

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