Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 95
________________ ९४ प्रशमरति पिता क्षमा कर देता है उस तरह क्षमा कर देना चाहिए ॥३१३॥ सर्वसुखमूलबीजं सर्वार्थविनिश्चयप्रकाशकरम् । सर्वगुणसिद्धिसाधनधनमर्हच्छासनं जयति ॥३१४॥ अर्थ : सारे सुखों के मूल बीजरूप, सकल अर्थ के निर्णय को प्रगट करनेवाला और सभी गुणों की सिद्धि के लिए धन की भांति साधनरूप जिनशासन जयशील होता है ॥३१४॥

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