Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 65
________________ प्रशमरति पुद्गलास्तिकाय को औदयिक व पारिणामिक भाव में एवं जीव को सभी जीवों में जानना चाहिए ॥ २०९॥ जीवाजीवा द्रव्यमिति षड्विधं भवति लोकपुरुषोऽयम् । वैशाखस्थानस्थः पुरुष इव कटिस्थकरयुग्मः ॥२१०॥ ६४ अर्थ : इस तरह जीव व अजीव के भेद से छह द्रव्य होते हैं। यह लोकपुरुष है । अपने दो हाथ कमर पर रखकर, दो पैर फैलाकर [ज्यों धनुषधारी दो पैर फैलाकर खड़ा रहे वैशाखस्थान] खड़े पुरुष जैसे लोकपुरुष हैं ||२१०॥ तत्राधोमुखमल्लकसंस्थानं वर्णयन्त्यधोलोकम् । स्थालमिव च तिर्यग्लोकमूर्ध्वमथ मल्लकसमुद्गम् ॥२११॥ सप्तविधोऽधोलोकस्तिर्यग्लोको भवत्यनेकविधः । पञ्चदशविधानः पुनरुर्ध्वलोकः समासेन ॥ २१२॥ अर्थ : उस लोक में अधोलोक का आकार उल्टे रखे गये शराव (प्याले) के आकार जैसा है । [ऊपर संक्षिप्त, नीचे विशाल ] तिर्यग्लोक का आकार थाली के आकार जैसा है एवं उर्ध्वलोक का आकार खड़े रखे गये शराव पर उलटे रखे गये शराव के आकार जैसा है [ शरावसंपुट जैसा ] अधोलोक के सात भेद हैं । तिर्यक्लोक के अनेक भेद हैं एवं उर्ध्वलोक के संक्षेप में पन्द्रह भेद हैं ॥ २११-२१२॥

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