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प्रशमरति
अर्थ : स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, आकार, खण्ड, अन्धकार, छाया, प्रकाश [चन्द्र का] और ताप [सूर्य का] ॥२१६।। कर्मशरीरमनोवाग्विचेष्टितोच्छासदुःखसुखदाः स्युः। जीवितमरणोपग्रहकराश्च संसारिणः स्कन्धाः ॥२१७॥
अर्थ : संसारी जीवों के कर्म [ज्ञानावरणादि] शरीर, मन, वचन, क्रिया, श्वास-उच्छास, सुख-दुःख देने वाले स्कंध [पुद्गल] हैं, जीवन और मरण में सहायक स्कंध है [ये सभी पुद्गल के उपकार हैं] ॥२१७।। परिणामवर्तनाविधिः परापरत्वगुणलक्षणः कालः । सम्यक्त्वज्ञानचारित्रवीर्यशिक्षागुणा: जीवाः ॥२१८॥
अर्थ : परिणाम, वर्तना की विधि, परत्व-अपरत्वगुण काल के लक्षण हैं । सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र, वीर्य एवं शिक्षा [ये] जीव के गुण हैं ॥२१८॥ पुद्गलकर्म शुभं यत् तत् पुण्यमिति जिनशासने दृष्टम् । यदशुभमथ तत्पापमिति भवति सर्वज्ञनिर्दिष्टम् ॥२१९॥
अर्थ : जो पुद्गल कर्म शुभ है वह पुण्य है, ऐसा जिनशासन में देखा गया है। जो अशुभ है वह पाप है। ऐसा सर्वज्ञ के द्वारा कथित है ॥२१९।।