Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 88
________________ प्रशमरति अर्थ : तीन देह से सर्वथा मुक्त आत्मा, स्पर्शरहित ऋजुश्रेणी प्राप्त करके, विग्रहगतिरहित, एक ही समय में अप्रतिहत गति से ऊपर जाकर...॥२८८॥ सिद्धक्षेत्रे विमले जन्मजरामरणरोगनिर्मुक्तः । लोकाग्रगतः सिद्धयति साकारेणोपयोगेन ॥ २८९ ॥ अर्थ : जन्म-जरा-मरण - रोग से सर्वथा मुक्त आत्मा, लोक में अग्रभाग पर जाकर विमल वैसे सिद्धिक्षेत्र में साकारपयोग से सिद्ध बनती है || २८९ ॥ सादिकमनन्तमनुपममव्याबाधसुखमुत्तमं प्राप्तः । केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनात्मा भवति मुक्तः ॥ २९०॥ ८७ अर्थ : सादि अनन्त, अनुपम और अव्याबाध उत्तम सुख को प्राप्त हुई मुक्तात्मा, केवल सम्यक्त्वस्वरूप, केवलज्ञानस्वरूप, केवलदर्शनस्वरूप होती है ॥२९०॥ मुक्तः सन्नाभावः स्वालक्षण्यात् स्वतोऽर्थसिद्धेश्च । भावान्तरसंक्रान्तेः सर्वज्ञाज्ञोपदेशाच्च ॥२९१॥ अर्थ : अपने लक्षण से, स्वतः अर्थसिद्धि से, भावसंक्रान्ति से और सर्वज्ञभाषित आगम के उपदेश से मुक्त आत्मा अभावरूप नहीं है! ॥२९१॥ त्यक्त्वा शरीरबन्धनमिहैव कर्माष्टकक्षयं कृत्वा । न स तिष्ठत्यनिबन्धादनाश्रयादप्रयोगाच्च ॥ २९२॥

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