Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 80
________________ प्रशमरति अर्थ : [इसके बाद] सम्यक्त्व मोहनीय का नाश करता है । पश्चात् आठ कषायों का [अप्रत्याख्यानावरण क्रोध वगैरह चार एवं प्रत्याख्यानावरण क्रोध वगैरह चार] क्षय करता है। इसके बाद नपुंसकवेद का नाश करता है। तत्पश्चात् स्त्रीवेद का क्षय करता है ॥२६१॥ हास्यादि ततः षट्कं क्षपयति तस्माच्च पुरुषवेदमपि । संज्वलनानपि हत्वा प्राप्नोत्यथ वीतरागत्वम् ॥२६२॥ अर्थ : [तत्पश्चात्] हास्य वगैरह छह प्रकृतियों का क्षय करता है फिर पुरुषवेद का क्षय करता है। इसके बाद संज्वलन कषायों को नष्ट करके वीतरागता प्राप्त करता है ॥२६२॥ सर्वोद्धातितमोहो निहतक्लेशो यथा हि सर्वज्ञः। भात्यनुपलक्ष्यरातूंशोन्मुक्तः पूर्णचन्द्र इव ॥२६३॥ ___ अर्थ : समस्त मोह को नष्ट करनेवाले एवं क्लेशों [क्रोधादि का] का हनन करनेवाले मुनि, नहीं दिखनेवाले राहु के मुख वगैरह अंशों से मुक्त पूर्णचन्द्र की भांति शोभायमान होते हैं ॥२६३॥ सर्वेधनैकराशीकृतसन्दीप्तोह्यनन्तगुणतेजाः । ध्यानानलस्तपःप्रशमसंवरहविर्विवृद्धबलः ॥२६४॥ अर्थ : सभी इंधनों का ढेर लगाकर उसे सुलगाया जाये और वह जिस ढंग से जल उठता है...उससे भी अनंतगुनी

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