Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 60
________________ प्रशमरति अर्थ : (संसारी जीव) चर (त्रस) और अचर (स्थावर) नामक दो तरह के बताये गये हैं। स्त्री-पुरुष, नपुंसक-तीन प्रकार के हैं । नारक तिर्यंच, मनुष्य एवं देव-ये चार प्रकार के कहे जाते हैं। एकेन्द्रिय-बेइन्द्रिय-तेइन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय-इस प्रकार के जीव गिने गये हैं । पृथ्वी-पानीअग्नि-वायु-वनस्पति एवं त्रस, ये भेद बतलाये गये हैं ॥१९१-१९२॥ एवमनेकविधानामेकैको विधिरनन्तपर्यायः । प्रोक्तः स्थित्यवगाहज्ञानदर्शनादिपर्यायैः ॥१९३॥ अर्थ : स्थिति, अवगाहना, ज्ञान, दर्शन इत्यादि पर्यायों की अपेक्षा से इस तरह अनेक भेदों का [जीवों का] एकएक भेद (मूल भेद) अनंत-अनंत पर्याययुक्त कहा गया है ॥१९३॥ सामान्यं खलु लक्षणमुपयोगो भवति सर्वजीवानाम् । साकारोऽनाकारश्च सोऽष्टभेदश्चतुर्धा च ॥१९४॥ अर्थ : सभी जीवों का सामान्य लक्षण होता है उपयोग। उस उपयोग के दो प्रकार है : साकार एवं अनाकार। साकार उपयोग के आठ प्रकार है व अनाकार उपयोग के चार प्रकार है ॥१९४॥

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