Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 36
________________ प्रशमरति ३५ (विषयों से) किस तरह वियोग हो ? निश्चय से (ये विषय इस लोक और परलोक में नुकसान करने वाले हैं, ऐसा जानकर) आगम का (जिनप्रणीत शास्त्रों का) अभ्यास करना चाहिए ॥१०५॥ आदावत्यभ्युदया मध्ये शृङ्गारहास्यदीप्तरसाः । निकषे विषया बीभत्सकरुणलज्जाभयप्रायाः ॥१०६॥ ___ अर्थ : [ये विषय] प्रारम्भ में उत्सव जैसे लगते हैं, मध्य में शृंगार और हास्य को उद्दीप्त करने वाले हैं और अन्त में बीभत्स, करुणास्पद, लज्जाजनक और भयोत्पादक होते हैं ॥१०६॥ यद्यपि निषेव्यमाणा मनसः परितुष्टिकारका विषयाः। किम्पाकफलादनवद् भवन्ति पश्चादतिदुरन्ताः ॥१०७॥ अर्थ : हालाँकि सेवन करते समय विषय मन को सुखकारी लगते हैं फिर भी किंपाक फल के सेवन की तरह बाद में अति दुःखदायी होते हैं ॥१०७॥ यद्वच्छाकाष्टादशमन्नं बहुभक्ष्यपेयवत् स्वादुः। विषसंयुक्तं भुक्तं विपाककाले विनाशयति ॥१०८॥ तद्वदुपचारसंभृतरम्यकरागरससेविता विषयाः। भवशतपरम्परास्वपि दुःखविपाकानुबन्धकराः ॥१०९॥ अर्थ : जिस तरह अट्ठारह प्रकार के शाक और काफी

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