________________
गाथाएँ, मनोरंजन और रहस्य आदि विषयों का समावेश पुराणों में होता है। 6. जैन पुराणों की सबसे प्रमुख बात यह है कि जैन पुराणों में वंश-परम्परा का वर्णन मुख्य रूप से नहीं मिलता है, जैसा वैदिक पुराणों में मिलता है। जैन पुराणों में तो जन्म को नहीं कर्म को महान माना है, अत: उनमें वंशपरम्परा के स्थान पर भवों की परम्परा का वर्णन मिलता है। जैसेआदिनाथ भगवान के पूर्व दश भव, चौबीस तीर्थंकरों, राम, सीता और हनुमान सभी मोक्षगामी जीवों के पूर्व भवों का वर्णन पुराणों में मिलता है। शरीर नहीं, आत्मा अजर-अमर है । यही विशेषता वैदिक पुराणों से जैन पुराणों को भिन्न और महत्त्वपूर्ण बनाती है।
7. एक विशेष बात यह है कि पुराणों में प्रथमानुयोग के साथ चरणानुयोग, करणानुयोग और द्रव्यानुयोग के विषय भी विद्यमान रहते हैं । जैसे— चरणानुयोग के ग्रन्थों में जिन आचार, सिद्धान्त और सल्लेखना आदि की शिक्षा दी जाती है, पुराणों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, राजा-महाराजा आदि उन्हीं आचरणों का पूर्ण पालन करते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं। इसी तरह करणानुयोग और द्रव्यानुयोग के विषय भी पुराणों में दिखाई देते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि जो शिक्षा तीनों अनुयोगों में दी जाती है, उसका उदाहरण और उसका पालन प्रथमानुयोग में अर्थात् पुराणों में मिलता है।
8. पुराण हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। बुरे परिणामों के फल को समझाते हैं और अच्छे परिणामों के फल को भी समझाते हैं। कोई बड़ा राजा, महाराजा और महातपस्वी साधु भी बुरे परिणामों से कैसे पतित और गरीब हो जाता है और दीन, हीन, गरीब और पापी से पापी चोर भी अपने परिणामों को सुधारकर कैसे ऊपर उठ जाता है - यह शिक्षा हमें पुराणों से मिलती है। जीवन के उत्थान और पतन का सटीक चित्रण पुराणों में मिलता है। पुराणों से हम उत्थान और पतन के कारण जानकर उत्थान की शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
9. हमारा सौभाग्य है कि हम पुराणों द्वारा तीर्थंकरों, शलाका पुरुषों, राम, लक्ष्मण, हनुमान और कृष्ण आदि मोक्षगामी जीवों के जीवन-चरित्र को पढ़ सकते हैं, जान सकते हैं और चरित्र में धारण कर सकते हैं। वास्तव में हम पुराणों और महापुराणों के प्रति ऋणी हैं, जिनके द्वारा हम इतिहास, साहित्य और दर्शन आदि अनेक विषयों को जान सकते हैं। अब हम सर्वप्रथम महापुराण का परिचय लिखते हैं। यह दो भागों में
18 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय